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क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड जिसे दिल्ली हाईकोर्ट लागू करवाना चाहता है?

नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की आवश्यकता का समर्थन किया और केंद्र से मामले में आवश्यक कदम उठाने को कहा। अदालत ने कहा कि आधुनिक भारतीय समाज धीरे-धीरे ‘सजातीय’ हो रहा है और धर्म, समुदाय और जाति की पारंपरिक बाधाओं को दूर कर रहा है, और इन बदलते […]

नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की आवश्यकता का समर्थन किया और केंद्र से मामले में आवश्यक कदम उठाने को कहा। अदालत ने कहा कि आधुनिक भारतीय समाज धीरे-धीरे ‘सजातीय’ हो रहा है और धर्म, समुदाय और जाति की पारंपरिक बाधाओं को दूर कर रहा है, और इन बदलते प्रतिमानों को देखते हुए, एक समान नागरिक संहिता जरूरी है। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक तलाक संबंधी मामले में निर्णय देते हुए समान नागरिक संहिता का समर्थन किया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, ’’सभी के लिए समान संहिता की जरूरत है. केंद्र सरकार को इस दिशा में जरूरी कदम उठाने चाहिए।’’

यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है?
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) अनिवार्य रूप से भारत के लिए एक कानून बनाने का आह्वान करती है, जो सभी धार्मिक समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे शादी, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि पर लागू होता है। यह संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत आता है। यह कानून भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।

वर्तमान में, विभिन्न कानून भारत में विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के लिए इन पहलुओं को विनियमित करते हैं, उदाहरण के लिए, हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम। हालांकि, मुस्लिम पर्सनल लॉ को संहिताबद्ध नहीं किया गया है और ये उनके धार्मिक ग्रंथों पर आधारित हैं।

अनुच्छेद 44 का उद्देश्य
निर्देशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 44 का उद्देश्य, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 37 में परिभाषित किया गया है, ‘कमजोर समूहों के खिलाफ भेदभाव और देशभर में विविध सांस्कृतिक समूहों के बीच सामंजस्य स्थापित करना’ है।

यूसीसी की उत्पत्ति
यूसीसी की उत्पत्ति स्वतंत्रता पूर्व युग में हुई जब ब्रिटिश सरकार ने 1835 में प्रस्तुत एक रिपोर्ट में ‘अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबंधित भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता की आवश्यकता’ पर जोर दिया। इसमें कहा गया है कि ‘हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को ऐसे संहिताकरण से बाहर रखा जाए।’

विधि आयोग की राय
2017 में, विधि आयोग ने यूसीसी की संभावना को लागू करने में मुश्किल करार देते हुए कहा था कि ‘यूसीसी संभव नहीं है और एक विकल्प भी नहीं है।’

कानून पैनल ने कहा था कि संविधान के तहत छूट का सम्मान किया जाना चाहिए और यूसीसी संविधान के सार को बिगाड़ सकता है। संविधान ने ही इतने सारे लोगों जैसे आदिवासियों आदि को इतनी छूट दी है। सिविल प्रक्रिया संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में भी छूट है। यूसीसी कोई समाधान नहीं है और एक समग्र अधिनियम नहीं हो सकता है। आप यह नहीं कह सकते कि संविधान को भूल जाइए और छठी अनुसूची को हटा दीजिए। यह लोगों को भारतीय संघ में उनके शामिल होने पर इस समझ पर सवाल खड़ा करेगा कि उनका सम्मान किया जाएगा।

इसने कहा कि भारत के सुदूर हिस्सों में प्रचलित रीति-रिवाजों के कारण भी यूसीसी संभव नहीं है, जो संविधान द्वारा संरक्षित हैं। उत्तर पूर्व में एक विशेष समुदाय में, पूरी संपत्ति छोटी बेटी के पास जाती है। फिर दामाद आकर वहीं बस जाता है और वह न केवल लड़की का पति होता है बल्कि लड़की की मां का पति भी बन जाता है। इस प्रथा को नोकुरम के नाम से जाना जाता है और दामाद न केवल संपत्ति बल्कि सभी उद्देश्यों के लिए ससुर के स्थान पर पुरुष बन जाता है। अब आप यूसीसी के तहत इसके साथ क्या करते हैं? यह संविधान के तहत संरक्षित है।

बता दें देश में लंबे समय से समान नागरिक संहिता एक मुद्दा बना हुआ है। देश की कई अदालतें अलग-अलग फैसलों में कह चुकी हैं कि कानूनों में एकरूपता लाने के लिए देश में एक समान नागरिक संहिता लाने के लिए कोशिश करनी चाहिए। देश का शाह बानो मामला भी ऐसा ही एक उदाहरण है। समान नागरिक संहिता की अवधारणा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में उल्लेखित है कि भारत के संपूर्ण क्षेत्र के नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुनिश्चित करने की कोशिश की जाएगी।

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