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कोपा अमेरिका कपः आसुंओं के बीच खेलभावना की मिसाल बने मेसी, नेमार

नई दिल्लीः कोपा अमेरिका कप में अर्जेंटीना ने आखिरकार ब्राजील को खिताबी मुकाबले में  शिकस्त दे ही दी। 1-0 की बढ़त अपने आप में बहुत मायने रखती है। जहां इस 1-0 की बढ़त ने अर्जेंटीना का 28 साल का सूखा खत्म किया, वहीं इस जीत के साथ ही मेसी को पहला राष्ट्रीय खिताब भी प्राप्त […]

नई दिल्लीः कोपा अमेरिका कप में अर्जेंटीना ने आखिरकार ब्राजील को खिताबी मुकाबले में  शिकस्त दे ही दी। 1-0 की बढ़त अपने आप में बहुत मायने रखती है। जहां इस 1-0 की बढ़त ने अर्जेंटीना का 28 साल का सूखा खत्म किया, वहीं इस जीत के साथ ही मेसी को पहला राष्ट्रीय खिताब भी प्राप्त हुआ। मेसी जो किसी भी पहचान के मोहताज नहीं है, उनको इस उपलब्धि के लिए इतना लंबा इंतजार करना पड़ा। राष्ट्रीय उपलब्धियों में यह पहली उपलब्धि उन्हें हासिल हुई है। निपुणता, कलात्मकता, हुनर और दक्षता दोनों टीमों की पहचान है पर बदकिस्मती से मैच उस मुकाम को हासिल नहीं कर पाया, जिसकी दर्शक उम्मीद कर रहे थे। अर्जेंटीना भाग्यशाली भी रहा कि वह ऑफसाइड की पकड़ में नहीं आया, जबकि ब्राजील उतना भाग्यशाली नहीं रहा। और अंत में डी मारियां के गोल और ब्राजील की रक्षा पंक्ति की चूक से कोपा अमेरिका कप का फैसला हुआ।

मैदान में जो सबसे ज्यादा सक्रिय थे, वह थे मैच के रेफरी जिनकी सीटी मिनट दर मिनट हमारे कानों में पड़ रही थी और जो सबसे ज्यादा रफ टैकल हो रहे थे उनका मुख्य केंद्र नेमार और मैसी ही थे। निसंदेह फुटबॉल एक बहुत ही कठिन खेल है, जिसमें प्रतिद्वंदिता सर चढ़कर बोलती है। शायद यही प्रतिद्वंदिता सन 1982 के वर्ल्ड कप में थी, जब माराडोना ने जीको के पेट में लात मारी थी और लाल कार्ड दिखाया गया था। इसी वर्ल्ड कप में जर्मनी के गोलकीपर का खतरनाक टैकल फ्रांस के खिलाड़ी के खिलाफ कौन भूल सकता है। समय के साथ-साथ फुटबॉल का स्वरूप और संघर्ष भी बदल रहा है। मैदान के अंदर चाहे कितना ही आपसी संघर्ष हो, परंतु मैदान के बाहर मित्रता जग जाहिर हो रही है वह नेमार और मेसी की हो या किसी और खिलाड़ी की। 

1986 के वर्ल्ड कप में अर्जेंटीना ने बहुत नकारात्मक खेल खेला था, परंतु फिर भी ब्राजील जैसी श्रेष्ठ टीम को हराने में सफल रहा। अर्जेंटीना के खिलाड़ी जानते थे कि उन्होंने एक श्रेष्ठ टीम को हराया है, लेकिन अपनी जीत की खुशी को भूलाकर पूरी टीम ब्राजील के दुख में शामिल हुई थी, जोकि खेलभावना की एक मिसाल थी। यह अपने आप में खेल का एक नया स्वरूप सामने आया था, इसके पीछे एक बड़ा कारण शायद व्यावसायिक फुटबॉल व क्लब फुटबॉल भी हो सकता है। पर आश्चर्य होता है क्रिकेट, बैडमिंटन, टेनिस इन खेलों में तो दोस्ती समझ में आती है क्योंकि इसमें आप एक-दूसरे के सामने कुछ फीट की दूरी बनाए रखते हैं। परंतु फुटबॉल एक अलग खेल है, जहां खिलाड़ियों को अपने विरोधी को छकाते हुए गोल करना होता है। अब चाहे खेल हो या जीवन का संघर्ष कोई हारना नहीं चाहता है। 

ऐसे में नेमार का यह कहना कि कोलंबिया भले ही अच्छी टीम है पर मैं चाहूंगा कि मेरे दोस्त मेसी की टीम से हमारा सामना हो। यह वही नेमार है जो मेसी को अपने साथ अपने निजी एरोप्लेन में लेकर गए थे। ब्राजील का हारना उसके दर्शकों और समर्थकों के लिए बड़ा दुखदाई था और उससे ज्यादा दुखद था, हार के बाद उन खिलाड़ियों की आंखों में आंसू जो दर्शकों और प्रशंसकों को व्यथित कर रहे थे। परंतु उससे ज्यादा सुख में पल वह थे जब नेमार और मेसी एक दूसरे को गले लगाकर बधाई दे रहे थे। मेसी सांत्वना दे रहा था और नेमार उनको बधाई। एक तरफ खुशी के आंसू थे, तो दूसरी तरफ हार का दर्द। परंतु यह कितना सुंदर दृश्य़ था जो खेल, खिलाड़ी और खेल भावना के मूल भाव को प्रदर्शित कर रहा था। कोई भी कल्पना नहीं कर सकता कि कुछ देर पहले यही खिलाड़ी एक-दूसरे से बुरी तरह से भिड़े हुए संघर्ष कर रहे थे और अब इस तरह गले मिल रहे हैं, यही खेल का उजला पक्ष है।

गावस्कर और मैलकम मार्शल की दोस्ती हो सकती है क्योंकि उन दोनों को 22 गज की दूरी से ही एक दूसरे का सामना करना है, आंद्रे अगासी और पीट सैम्प्रास की दोस्ती हो सकती है क्योंकि उन दोनों को आपस में टकराना नहीं है। उनके बीच में नेट है उन्हें दूर से ही गेंद को मारना है, प्रकाश पादुकोण और मार्टिन फ्रोस्ट की दोस्ती हो सकती है क्योंकि उनको शटल को एक दूसरे के पाले में गिराना भर है। परंतु फुटबॉल, हॉकी, बॉक्सिंग इनमें एक अनवरत संघर्ष है, इसमें दोस्ती की कल्पना करना अनेकों बार हास्यास्पद लगता है, परंतु यह संघर्ष ही तो है जो दर्शकों को इस खेल के प्रति जरूरत से ज्यादा आकर्षित और रोमांचित करता है। यह संघर्ष खिलाड़ियों, टीमों, क्लबों और राष्ट्र के बीच में ही नहीं बल्कि दर्शकों और समर्थकों के बीच में भी रहता है, जिसे गाहे-बगाहे देखा जा सकता है।

29 मई 1985 का लिवरपूल और युवेंटिस के समर्थकों का दर्दनाक संघर्ष कैसे भुलाया जा सकता है जो खेल के नाम पर धब्बे और असभ्यता के रूप में सदैव याद रखा जाएगा। शायद यह कठिन संघर्ष ही वह कारण है कि यह खेल दर्शकों के बीच इतना लोकप्रिय है। निस्संदेह इस खेल में रोमांच व संघर्ष खूब बढ़ रहा है, परंतु दूसरी तरफ यह खुशी की बात है कि हम सभ्य होते जा रहे हैं।

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