लोगों का कहना है कि भगवान शिव और पार्वती के स्नान के लिए यहां विष्णु जी ने एक कुंड बनाया था, जिसे लोग अब मणिकर्णिका कुंड के नाम से भी जानते हैं। कहा जाता है कि जब शिव और पार्वती इस कुंड में स्नान कर रहे थे, तब शिवजी की मणि और माता पार्वती का कुंडल इस कुंड में गिर गया था, तब से इस जगह को मणिकर्णिका घाट कहा जाने लगा। यह तीर्थ काशी में गंगा के किनारे स्थित हैं। इसे भगवान विष्णु ने अपने चक्र से बनाया था। इसलिए इसे मणिकर्णिका चक्र पुष्करणी तीर्थ भी कहते हैं।
कहा जाता है कि भगवान शिव ने मणिकर्णिका घाट को अनंत शांति का वरदान दिया है। लोगों का यह भी मानना है कि यहां हजारों साल तक भगवान विष्णु ने भगवान शिव की आराधना की थी और ये प्रार्थना की थी कि सृष्टि के विनाश के समय भी काशी को नष्ट न किया जाए।
श्री विष्णु की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ काशी आए और उन्होंने भगवान विष्णु की मनोकामना पूरी की। तभी से यह मान्यता है कि वाराणसी में अंतिम संस्कार करने से मोक्ष (अर्थात व्यक्ति को जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है) की प्राप्ति होती है। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि हिंदुओं में यह स्थान अंतिम संस्कार के लिए सबसे पवित्र माना जाता है।
क्यों कहते हैं ‘मणिकर्णिका’, 80 हजार साल है पुराना
– ऐसी मान्यता है कि यहां दोपहर में आज भी विष्णु और शिव अपने समस्त देवी देवताओं के साथ भी स्नान ध्यान करने आते हैं। इसलिए स्थानीय लोगों के साथ दक्षिण भारतीय लोग यहां दोपहर में स्नान करने आते हैं।
– स्कंद पुराण के काशीखंड में लिखा है कि सृष्टि काल के आरंभ में भगवान विष्णु ने यहां 80 हजार वर्षों तक तपस्या की थी। उन्होंने ही इसे अपने चक्र से इसका निर्माण किया था। इसलिए इसे चक्र पुष्करणी भी कहते हैं।
– बाद में इसमें शिव और पार्वती ने प्रसन्न होकर स्नान किया। स्नान के पहली डुबकी के बाद जब दोनों ने अपना माथा झटका तब शिव की मणि और पार्वती का कुंडल गिर गया। तभी से इसका नाम मणिकर्णिका कुंड पड़ा। वैसे इसका पूरा नाम चक्र पुष्करणी मणिकर्णिका तीर्थ है।
यहां स्नान करने से मिलता है मोक्ष
– आदि शंकराचार्य ने अपने मणिकर्णिका स्रोत में लिखा है- ‘माध्याने मणिकर्णिका हरिहरो सायुज्य मुक्ति प्रदौ’ यानि दोपहर में यहां स्नान करने वालों को शिव और विष्णु दोनों लोग अपने सानिध्य में लेकर मुक्ति प्रदान कर देते हैं।
– इसलिए लोग मान्यता के अनुसार, यहां दोपहर में भगवान खुद स्नान करते हैं, इसलिए लोग दोपहर में स्नान करने आते हैं।
– मणिकर्णिकाकुंड के बाहर विष्णुचरण पादुका है। मणिकर्णिकाकुंड घाट तल से करीब 25 फिट नीचे स्थित है। कुंड में जाने के लिए चारो तरफ से 17-17 सीढियां बनी हुई हैं।
– कुंड के किनारे दक्षिण दिशा में भगवान विष्नू गणेश और शिव की प्रतिमा भी स्थापित है। यहां लोग स्नान करने के बाद जल चढ़ाते हैं।
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