बीजापुर: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 432 किलोमीटर दूर एवं जिला मुख्यालय बीजापुर से लगभग 86 किलोमीटर दूर राज्य के अंतिम छोर में स्थित आदिवासी बाहुल्य ग्राम तारलागुड़ा, कोत्तूर एवं चन्दूर स्थित है। यहां के जनजातीय किसानों का मुख्य व्यवसाय मूंग की पारंम्परिक खेती है जिससे कि उनका गुजारा करना बहुत कठिन है।
जीवन-यापन करने के लिए रोजगार की तलाश में यहां के किसान एवं कृषि मजदूर सीमावर्ती राज्य तेलंगाना एवं आन्ध्रप्रदेश में मिर्ची तोड़ने एवं अन्य कार्य करने पलायन करते हैं। किसानों के इन समस्याओं का निराकरण करने के लिए जिला प्रशासन बीजापुर द्वारा पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, कृषि, उद्यान एवं राजस्व विभाग के माध्यम से एक व्यापक कार्ययोजना तैयार कर ग्राम तारलागुड़ा के 12 किसानों के 20 एकड़ में, ग्राम कोत्तूर के 31 किसानों के 50 एकड़ में और ग्राम चन्दूर के 35 किसानों 85 एकड़ में मिर्ची की खेती करने के लिए आवश्यक अधोसंरचना जैसे फेंसिंग, बीज एवं खाद, नलकूप, पम्प, ड्रीप संयंत्र, मल्चिंग आदि जिला खनिज संस्थान न्यास निधि, एनएमडीसी सीएसआर एवं मनरेगा योजना अंतर्गत किसानों को निःशुल्क प्रदान किया एवं प्रशिक्षण एवं भ्रमण के लिए बस्तर किसान कल्याण संघ के अनुभवी किसानों के प्रक्षेत्र में आत्मा योजना अंतर्गत प्रशिक्षण एवं भ्रमण कराया गया।
वर्तमान में किसानों द्वारा मिर्ची उत्पादन के लिए नर्सरी तैयार कर खेत की तैयारी एवं खेत की बाउण्ड्री में कटहल, सीताफल, काजू, आंवला जैसे फलदार वृक्ष और लौकी, तरोई, करेला का रोपण किया जा रहा है। नर्सरी से पौधा तैयार होेते ही 35 से 40 दिन बाद मिर्ची का रोपाई किया जायेगा। जिला प्रशासन की इस अभिनव पहल से क्षेत्र के मजदूरों को रोजगार उपलब्ध होगा, जिससे मजदूर पलायन से मुक्ति पायेंगे। पहले इन किसनों को मूंग की खेती से लगभग 10 से 15 हजार रूपये प्रति एकड़ आमदनी होता था, वहीं अब मिर्ची की खेती करने से किसानों को लगभग डेढ़ लाख रूपये प्रति एकड़ लाभ होगा, जो कि परंम्परागत मूंग की खेती से 10 गुना अधिक है। सीमावर्ती राज्य तेलंगाना के वारंगल मिर्च का प्रमुख व्यापार केन्द्र है जिसका फायदा इन किसानों को मिलेगा। मिर्च फसल के अतिरिक्त बाउण्ड्री में किये गये प्लांटेशन से भी किसानों को फल एवं सब्जी उत्पादन होगी, जो उनकी अतिरिक्त आमदनी का जरिया बनेगा।
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