नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने सोमवार को राष्ट्रीय राजधानी में बढ़ते वायु प्रदूषण के कारणों का हवाला देते हुए अपने हलफनामे पर दिल्ली सरकार की खिंचाई की। केंद्र सरकार ने सर्वाेच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक हलफनामे में एक वैज्ञानिक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि पराली जलाने से दिल्ली के वायु प्रदूषण (पीएम 2.5) का केवल 4 प्रतिशत (पीएम 2.5) सर्दियों में और 7 प्रतिशत गर्मियों में होता है।
हलफनामे पर प्रतिक्रिया देते हुए, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, ‘‘वास्तव में, अब बिल्ली बैग से बाहर आ गई है (असलियत सामने आ गई है), किसानों के पराली जलाने से चार्ट के अनुसार 4 प्रतिशत प्रदूषण होता है। इसलिए हम कुछ ऐसा लक्षित कर रहे हैं जो पूरी तरह से महत्वहीन है।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण के स्तर के लिए पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराने वाला दिल्ली सरकार का हलफनामा बिना तथ्यात्मक आधार के है।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘‘क्या आप सैद्धांतिक रूप से सहमत हैं कि पराली जलाना वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण नहीं है।’’
इस बीच, मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा, ‘‘जहां पराली जलाना प्रमुख कारण नहीं है, वहीं पंजाब और हरियाणा में बहुत अधिक पराली जलाई जा रही है। हम राज्य सरकारों से अनुरोध करते हैं कि वे एक सप्ताह के लिए किसानों को पराली जलाने को रोकें।’’
तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि औद्योगिक गतिविधि, बिजली उत्पादन, वाहनों का यातायात और निर्माण वायु गुणवत्ता बिगड़ने में प्रमुख योगदानकर्ता हैं, जबकि पराली जलाने का एक मामूली योगदान है।
मामले को बुधवार को पोस्ट करते हुए, सर्वाेच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को दिल्ली और उसके आसपास अपने कर्मचारियों के लिए घर से काम करने पर विचार करने की सलाह दी।
(एजेंसी इनपुट के साथ)
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