कार्तिक माह में हिन्दू मान्यता के अनुसार बहुत से त्यौहार मनाये जाते है। अलग अलग क्षेत्र, समुदाय के लोग अलग अलग त्यौहार मनाते है। भारत के उत्तर एवं मध्य भारत में आवला नवमी का त्यौहार इसी तरह का पारिवारिक त्यौहार है। आँवला नवमी अथवा नवमी कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन मनाई जाती हैं। यह पर्व दिवाली त्योहार के बाद आता हैं। वर्ष 2021 में 13 वंबर को मनाई जायेगी।
इसी दिन के साथ भारत के दक्षिण एवम पूर्व में जगद्धात्री पूजा का महा पर्व शुरू होता हैं।यह पर्व भी बड़े जोरो शोरो से मनाया जाता हैं।
आवला अथवा अक्षय नवमी
इस दिन भगवान कृष्ण वृन्दावन गोकुल की गलियाँ छोड़ मथुरा गए थे। इस दिन उन्होंने अपनी बाल लीलाओं को त्याग कर अपने कर्तव्य के पथ पर कदम रखा था।यह पूजा खासतौर पर उत्तर भारत में की जाती हैं। इस दिन वृंदावन की परिक्रमा शुरू कर दी जाती हैं।महिलायें आँवला नवमी की पूजा पूरे विधि विधान के साथ करती हैं।यह पूजा संतान प्राप्ति एवम पारिवारिक सुख सुविधाओं के उद्देश्य से की जाती हैं।
आँवला या अक्षय नवमी पूजा कथा एवम महत्व
एक व्यापारी और उसकी पत्नी जो काशी में रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। इसी कारण व्यापारी की पत्नी हमेशा दुखी सी रहती थी और उसका स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो गया था।एक दिन उसे किसी ने कहा कि अगर वो संतान चाहती हैं, तो वह किसी जीवित बच्चे की बलि भैरव बाबा के सामने दे। इससे उसको संतान प्राप्ति होगी।उसने यह बात अपने पति से कही, लेकिन पति को यह बात फूटी आँख ना भायी, पर व्यापारी की पत्नी को संतान प्राप्ति की चाह ने इस तरह से बाँध दिया था, कि उसने अच्छे बुरे की समझ को ही त्याग दिया और एक दिन एक बच्चे की बलि भैरव बाबा के सामने दे दी, जिसके परिणाम स्वरूप उसे कई रोग हो गये। अपनी पत्नी की यह हालत देख व्यापारी बहुत दुखी था। उसने इसका कारण पूछा, तब उसकी पत्नी ने बताया कि उसने एक बच्चे की बलि दी। उसी के कारण ऐसा हुआ।यह सुनकर व्यापारी को बहुत क्रोध आया और उसने उसे बहुत मारा। पर बाद में उसे अपनी पत्नी की दशा पर दया आ गई और उसने उसे सलाह दी कि वो अपने इस पाप की मुक्ति के लिए गंगा में स्नान करे और सच्चे मन से प्रार्थना करे।व्यापारी की पत्नी ने वही किया। कई दिनों तक गंगा स्नान किया और तट पर पूरी श्रद्धा के साथ पूजा की। इससे प्रसन्न होकर माता गंगा ने एक बूढी औरत के रूप में व्यापारी की पत्नी को दर्शन दिए और कहा उसके शरीर के सारे विकार दूर करने के लिए वो कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन वृंदावन में आँवले का व्रत रख उसकी पूजा करेगी, तो उसके सभी कष्ट दूर होंगे।
व्यापारी की पत्नी ने बड़े विधि विधान के साथ पूजा की और उसके शरीर के सभी कष्ट दूर हुये। उसे सुंदर शरीर प्राप्त हुआ। साथ ही उसे पुत्र की प्राप्ति भी हुई। तब ही से महिलायें संतान प्राप्ति की इच्छा से आँवला नवमी का व्रत रखती हैं।
आंवला नवमी की एक अन्य कथा
आंवल्या राजा की कथा- एक राजा था, उसका प्रण था वह रोज सवा मन आंवले दान करके ही खाना खाता था। इससे उसका नाम आंवलया राजा पड़ गया। एक दिन उसके बेटे बहू ने सोचा कि राजा इतने सारे आंवले रोजाना दान करते हैं, इस प्रकार तो एक दिन सारा खजाना खाली हो जायेगा। इसीलिए बेटे ने राजा से कहा की उसे इस तरह दान करना बंद कर देना चाहिए।
बेटे की बात सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ और राजा रानी महल छोड़कर बियाबान जंगल में जाकर बैठ गए। राजा-रानी आंवला दान नहीं कर पाए और प्रण के कारण कुछ खाया नहीं। जब भूखे प्यासे सात दिन हो गए तब भगवान ने सोचा कि यदि मैने इसका प्रण नहीं रखा और इसका सत नहीं रखा तो विश्वास चला जाएगा। इसलिए भगवान ने, जंगल में ही महल, राज्य और बाग-बगीचे सब बना दिए और ढेरों आंवले के पेड़ लगा दिए। सुबह राजा रानी उठे तो देखा की जंगल में उनके राज्य से भी दुगना राज्य बसा हुआ है।
राजा, रानी से कहने लगे- रानी देख कहते हैं, सत मत छोड़े। आओ नहा धोकर आंवले दान करें और भोजन करें। राजा-रानी ने आंवले दान करके खाना खाया और खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे। उधर आंवला देवता का अपमान करने व माता-पिता से बुरा व्यवहार करने के कारण बहू बेटे के बुरे दिन आ गए। राज्य दुश्मनों ने छीन लिया दाने-दाने को मोहताज हो गए और काम ढूंढते हुए अपने पिताजी के राज्य में आ पहुंचे। उनके हालात इतने बिगड़े हुए थे कि पिता ने उन्हें बिना पहचाने हुए काम पर रख लिया।
बेटे बहू सोच भी नहीं सकते कि उनके माता-पिता इतने बड़े राज्य के मालिक भी हो सकते है सो उन्होंने भी अपने माता-पिता को नहीं पहचाना। एक दिन बहू ने सास के बाल गूंथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा। उसे यह सोचकर रोना आने लगा की ऐसा मस्सा मेरी सास के भी था। हमने ये सोचकर उन्हें आंवले दान करने से रोका था कि हमारा धन नष्ट हो जाएगा। आज वे लोग न जाने कहां होगे?
यह सोचकर बहू को रोना आने लगा और आंसू टपक टपक कर सास की पीठ पर गिरने लगे। रानी ने तुरंत पलट कर देखा और पूछा कि, तू क्यों रो रही है? उसने बताया आपकी पीठ जैसा मस्सा मेरी सास की पीठ पर भी था। हमने उन्हें आंवले दान करने से मना कर दिया था इसलिए वे घर छोड़कर कहीं चले गए।
तब रानी ने उन्हें पहचान लिया। सारा हाल पूछा और अपना हाल बताया। अपने बेटे-बहू को समझाया कि दान करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है। बेटे-बहू भी अब सुख से राजा-रानी के साथ रहने लगे।
एक अन्य कथा के अनुसार
एक बार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगने एक कुटिया के सामने रुके। वहां एक बूढ़ी औरत रहती थी, जो अत्यंत गरीबी और दयनीय स्थिति में थी। शंकराचार्य की आवाज सुनकर वह बूढ़ी औरत बाहर आई। उसके हाथ में एक सूखा आंवला था।
वह बोली महात्मन मेरे पास इस सूखे आंवले के सिवाय कुछ नहीं है जो आपको भिक्षा में दे सकूं। शंकराचार्य को उसकी स्थिति पर दया आ गई और उन्होंने उसी समय उसकी मदद करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्र रूपी 22 श्लोक बोले। ये 22 श्लोक कनकधारा स्तोत्र के श्लोक थे।
इससे प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें दिव्य दर्शन दिए और कहा कि शंकराचार्य, इस औरत ने अपने पूर्व जन्म में कोई भी वस्तु दान नहीं की। यह अत्यंत कंजूस थी और मजबूरीवश कभी किसी को कुछ देना ही पड़ जाए तो यह बुरे मन से दान करती थी। इसलिए इस जन्म में इसकी यह हालत हुई है। यह अपने कर्मों का फल भोग रही है इसलिए मैं इसकी कोई सहायता नहीं कर सकती।
शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मी की बात सुनकर कहा- हे महालक्ष्मी इसने पूर्व जन्म में अवश्य दान-धर्म नहीं किया है, लेकिन इस जन्म में इसने पूर्ण श्रद्धा से मुझे यह सूखा आंवला भेंट किया है। इसके घर में कुछ नहीं होते हुए भी इसने यह मुझे सौंप दिया। इस समय इसके पास यही सबसे बड़ी पूंजी है, क्या इतना भेंट करना पर्याप्त नहीं है। शंकराचार्य की इस बात से देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उसी समय उन्होंने गरीब महिला की कुटिया में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा कर दी।
आंवला नवमी पूजा विधि सामग्री
1 आँवले का पौधा पत्ते एवम फल, तुलसी के पत्ते एवम पौधा
2 कलश एवम जल
3 कुमकुम, हल्दी, सिंदूर, अबीर, गुलाल, चावल, नारियल, सूत का धागा
4 धूप, दीप, माचिस
5 श्रृंगार का सामान, साड़ी ब्लाउज
6 दान के लिए अनाज
आंवला नवमी पूजा विधि
औरतें जल्दी उठ नहा धोकर साफ कपड़े पहनती है।
आंवला वृक्ष के आसपास की साफ-सफाई करें और वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करके कच्चा दूध डालें।
इस दिन आवला के पेड़ की पूजा होती है, और उसी के पास भोजन किया जाता है। इस दिन पूरा परिवार ऐसी जगह पिकनिक की योजना बनाता है, जहाँ आवला का पेड़ होता है।
जो लोग बाहर कही नहीं जाते है, वे घर में आवले के छोटे पौधे के पास ही इसकी पूजा करते है, और फिर भोजन करते है।
पूरे परिवार के लिए यह एक पिकनिक हो जाती है, जिसमें औरतें घर से खाना बनाकर ले जाती है, या वहीँ सब मिलकर बनाते है।
आमले के पेड़ की पूजा की जाती है, उसकी परिक्रमा का विशेष महत्व है।सफ़ेद या लाल मौली के धागे से इसकी परिक्रमा करते है।
आँवले के वृक्ष में दूध चढ़ाया जाता हैं पूरी विधि के साथ पूजन किया जाता हैं।
श्रृंगार का सामान एवम कपड़े किसी गरीब सुहागन अथवा ब्राहमण पंडित को दान देते हैं।
इस दिन दान का विशेष महत्व होता हैं गरीबो को अनाज अपनी इच्छानुसार देते हैं।
औरतें अपने अनुसार 8 या 108 बार परिक्रमा करती है। इस परिक्रमा में 8 या 108 की भी चीज चढ़ाई जाती है,इसमें औरतें बिंदी, टॉफी, चूड़ी, मेहँदी, सिंदूर आदि कोई भी वस्तु का चुनाव करती है, और इसे आमला के पेड़ में चढ़ाती है।
इसके बाद इस समान को हर सुहागन औरत को दिया जाता है।
फिर सब साथ बैठकर कथा सुनती है, और खाने बैठती है।
इस दिन ब्राह्मणी औरत को सुहाग का समान, खाने की चीज और पैसे दान में देना अच्छा मानते है।
आजकल कई बड़े- बड़े गार्डन में आँवला नवमी पूजा का आयोजन किया जाता हैं।पूरे परिवार के साथ सभी महिलायें गार्डन में एकत्र होती हैं पूजा करती हैं और साथ में मिलकर सभी भोजन करते हैं।कई खेल खेलते हैं और भजन एवम गाने गाकर उत्साह से आँवला पूजन पूरा करते हैं।
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