महाराष्ट्र (Maharashtra) के कोल्हापुर (Kolhapur) में स्थित महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Mandir) देश के प्रमुख मंदिरों में एक और शक्तिपीठ माना जाता है। कहते हैं कि यहां साल में दो बार सूर्य की किरणें मां लक्ष्मी (Maa Laxmi) के विग्रह पर सीधी पड़ती है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य की किरणें माता के चरणों को स्पर्श करती हुई उनके मुखमंडल तक आती हैं। जानिए, इस मंदिर से जुड़ी कुछ ओर रोचक बातों को।
मंदिर में माता लक्ष्मी की मूर्ति के प्रत्येक हिस्से पर सूर्य की किरणें अलग-अलग दिन दर्शन करती हैं। मंदिर की पश्चिमी दीवार पर एक खिड़की है जिसमें से सूर्य की रोशनी आती है और माता की मूर्ति को स्पर्श करती है। रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव माता लक्ष्मी के चरण छूते हैं। अधिकतर मंदिरों में देवी-देवता पूर्व या उत्तर दिशा की ओर देख रहे होते हैं लेकिन इस मंदिर में माता लक्ष्मी का चेहरा पश्चिम दिशा की तरफ है।
इस मंदिर में जो भक्त इच्छा लेकर आता है वो पूर्ण हो जाती है। इस मंदिर को अम्बा माता का मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां पर माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ निवास करती हैं। दिवाली के खास मौके पर मंदिर को बेहद खूबसूरत तरीके से सजाया जाता है।
इस मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में चालुक्य वंश के राजा कर्णदेव ने कराया था। बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण अधूरा रह गया था, जिसे 9वीं शताब्दी में पूरा किया गया था।
यह मंदिर 27 हजार वर्ग फुट में फैला हुआ है। मंदिर करीब 45 फीट ऊंचा है। इस मंदिर में स्थापित माता लक्ष्मी की मूर्ति 4 फीट ऊंची है, जोकि करीब 7 हजार वर्ष पुरानी है। चार हाथों वाली यह प्रतिमा काले पत्थर से बनी है। देवी अपने चारों हाथों में अमूल्य वस्तुएं धारण किए हुए हैं। उनके सिर पर गहनों से सजा मुकुट है, जिसका वजन 40 किलोग्राम है। इस मुकुट में भगवान विष्णु के शेषनाग का चित्र भी बना है। साथ ही मंदिर की दीवार में श्री यंत्र को भी पत्थर पर खोदकर बनाया गया है। आदि गुरु शंकराचार्य ने माता लक्ष्मी की मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा की थी।
माता के वर से कोल्हापुर का नाम पड़ा
कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर से जुड़ी पौराणिक कहानियों के अनुसार इस स्थान पर एक कोल्हा नाम का राक्षस रहता था। वह भगवान ब्रह्मा के पास तपस्या करने के लिए गया तो इस स्थान पर सुकेसी नाम के एक अन्य राक्षस ने कब्जा कार लिया। कोल्हा भगवान ब्रह्मा की तपस्या पूर्ण कार वापस आया तो उसने सुकेसी का वध कर अपने बेटे करवीरा को यहां का राजा बना दिया। उसके बाद दोनों बाप बेटे मिलकर यहां अत्याचार करने लगे।
यह सब देख कर भगवान शिव जी ने करवीरा को एक युद्ध में मार दिया। अपने पुत्र की मृत्यु का बदला लेने के लिए कोल्हा ने माता महालक्ष्मी की तपस्या की और उनसे 100 वर्षों तक इस शहर में प्रवेश नहीं करने का वचन लिया। कोल्हा को वचन देकर माता महालक्ष्मी यहां से चली गई। माता के जाने के बाद कोल्हा ने यहां रहने वाले लोगों और देवताओं को फिर से परेशान करना शुरू कर दिया। बाद में 100 वर्षों के बाद जब माता वापस आई तो उन्होंने देवताओं के साथ उस कोल्हा राक्षस का वध कर दिया।
अपनी मृत्यु से पहले कोल्हा ने माता से तीन वर मांगे पहला वर उसने अपने लिए माफी मांगी, दूसरा वर इस जगह का नाम कोल्हापुर रख दें और तीसरा वर माता से हमेशा यही पर रहने के लिए कहा। माता ने उसकी सभी बातें मानी और हमेशा के लिए यहीं पर विराजमान हो गई।