भुवनेश्वर: ओडिसा के पुरी में बाट मंगला मंदिर स्थित है। यहां मंगला देवी कमल पर विराजमान वैष्णवी ठाकुर्नी का चतुर्भुज एवं त्रिनेत्री रूप हैं। उनके ऊपरी हस्तों में शंख एवं त्रिशूल हैं। जगन्नाथ की भूमि के प्रवेशद्वार पर वे एक रक्षक के समान विराजमान हैं। ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ जी के दर्शन से पूर्व मंगला देवी के दर्शन आवश्यक हैं।
किवदंतियों के अनुसार सृष्टि की रचना से पूर्व ब्रह्माजी जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए धरती पर आये थे। मार्ग भटकने पर उन्हें बाट मंगला ने ही जगन्नाथजी तक पहुँचने का मार्ग बताया था। यह चैत्र मास के मंगलवार के दिन हुआ था। इसीलिए स्त्रियाँ इस दिन उस स्थान पर पूजा करती हैं जहां एक से अधिक मार्गों का संगम होता है।
इसे पुरी का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। यह प्रथा है कि भक्त इस मंदिर में जगन्नाथ मंदिर में जाने से पहले प्रार्थना करते हैं। ओड़िया भाषा में ‘बाट’ का अर्थ है ‘रास्ता’। चूंकि देवी मंगला श्रीक्षेत्र के रास्ते में विस्थापित हैं, इसलिए उन्हें बाट मंगला के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि देवी तीर्थ यात्रियों को पुरी का मार्गदर्शन कराती हैं। तीर्थयात्रियों और सभी पर्यटक वाहनों को पुरी में प्रवेश करने और अपनी सुरक्षित और खुशहाल यात्रा के लिए जाते समय बाट मंगला मंदिर में सभी प्रकार से पूजा और दर्शन करने का सौभाग्य मिलता हैं।
भगवान जगन्नाथ के नबकलेबर त्योहार के समय, पवित्र लकड़ी से लदी गाड़ियां ‘बाट’ मंगला मंदिर में पूजा करने के बाद श्रीक्षेत्र में प्रवेश करती हैं। इस मंदिर में दुर्गा पूजा, दशहरा, चैत्र मंगलवार आदि प्रसिद्ध अनुष्ठानों को बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।