लंबोदर के नाम से संबोधित किए जाने वाले गोल-मटोल गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि का दाता कहा जाता है। देवी-देवताओं में प्यारे गणेश जी का मस्तक तो हाथी का है लेकिन वह सवारी नन्हे मूषक की करते हैं खाने को उन्हें चाहिए गोल-गोल लड्डू. उनकी आकृति चित्रकारों की कूची को बेहद प्रिय रही है और उनकी बुद्धिमत्ता का लोहा ब्रह्मादि सहित सभी देवताओं ने माना है। उनके विचित्र रूप को लेकर उनके भक्तों में जिज्ञासा रहती है। आइए इन जिज्ञासाओं को दूर करते हैं।
भगवान गणेश की पहले पूजा क्यों की जाती है कोई भी शुभ काम शुरू करने से पहले भगवान गणेशकी पूजा जरूर की जाती है। इस तरह की स्थिति को हम ‘श्रीगणेश’ के नाम से भी जानते हैं। अब मन में सवाल उठता है कि आखिर क्यों भगवान श्री गणेश की पूजा अन्य देवताओं से पहले की जाती है।
गणेश जी की प्रथम पूजा के संबंध में कई पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं। जब भगवान शिव ने गणेश जी का सिर काटा तो उस समय पार्वती बहुत क्रोधित हो गई। गज का सिर लगाने के बाद भी जब वह शिव से रूठी रहीं तो शिव ने उन्हें वचन दिया कि उनका पुत्र गणेश कुरूप नहीं कहलाएगा बल्कि उसकी पूजा सभी देवताओं से पहले की जाएगी।
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार सभी देवताओं में पहले पूजे जाने को लेकर विवाद छिड़ गया। आपसी झगड़ा सुलझाने के लिए वे भगवान विष्णु के पास गए। विष्णु जी सभी देवताओं को लेकर महेश्वर शिव के पास गए। शिव ने यह शर्त रखी कि जो पूरे विश्व की परिक्रमा करके सबसे पहले यहां पहुंचेगा वही श्रेष्ठ होगा और उसी की पूजा सर्वप्रथम होगी।
शर्त सुनते ही सभी देवता शीघ्रता से अपने-अपने वाहनों में बैठ विश्व की परिक्रमा के लिए प्रस्थान कर गए, लेकिन गणेश जी ने बुद्धि चातुर्य का प्रयोग किया और अपने माता-पिता से एक साथ बैठने का अनुरोध किया। गणेश जी माता (पृथ्वी) और पिता (आकाश) की परिक्रमा करने के बाद सर्वश्रेष्ठ पूजन के अधिकारी बन गए।