Shardiya Navratri 2022: हमारे सनातनधर्म में कलश स्थापन का विशेष महत्व है। प्रत्येक शुभ कार्य में तथा छोटे से छोटे व वृहद् से वृहद् पूजनकर्म व अनुष्ठान में कलश स्थापन किया जाता है, और नवरात्रि में तो इसका अपना एक अलग हीं महत्व है। कलश के महत्व को प्रतिपादित करते हुए आगम शास्त्र में कहा गया है कि:-
कलास्तु शेरते यत्र, कलश स च उच्यते।
धर्मार्थ कामदा यत्र, पूज्यते कलशस्य च॥
इसलिए जो मनुष्य पुरुषार्थ चतुष्ट्य व मनोनुकूल फल प्राप्त करना चाहतें हैं, उन्हें घट की स्थापना अवश्य हीं करनी चाहिए।
किन्तु इसमें कुछ विशेष सावधानियाँ व शास्त्रोचित दिशा निर्देशों का पालन करना चाहिए ताकि सिद्धि सफलता का मार्ग प्रशस्त हो सके।
शुभ मुहूर्त का हमेशा रखें ध्यान
घट की स्थापना हमेशा शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए। धर्मसिंधु व निर्णय सिंधु में स्पष्ट निर्देश है कि –
आद्या शोडश नाडीस्तु लब्ध्वा यः कुरुते नरः।
कलश स्थापनं तत्र ह्यरिष्टं जायते ध्रुवम्॥
अर्थात् अमावस्या समाप्ति के बाद प्रतिपदा लगने के आदि के १६ घड़ी उपरान्त हीं कलश की स्थापना करनी चाहिए। अभिजीत काल में (दिन के मध्य भाग में) कलश की स्थापना विशेष फलदाई मानी गई है।
नवरात्रि में रात्रिकाल में नहीं करना चाहिए कलशस्थापन
नवरात्रि में रात्रिकाल में कलश की स्थापना कदापि नहीं करनी चाहिए। मत्स्यपुराण में आया है –
कलशस्थापनं रात्रौ न कार्यम्।
न रात्रौ स्थापनं कार्यं न च कुम्भाभिषेचनम्।
वहीं देवी पुराण में भी वर्णित है:-
प्रातरावाहये देविप्रातरेव प्रवेशयेत्।
प्रातः प्रातश्च सम्पूज्यः प्रातरेव विसर्जयेत्॥
इससे यह स्पष्ट होता है कि घटस्थापन प्रातःकाल या मध्याह्न काल के अभिजित मुहूर्त के अंतर्गत हीं करनी चाहिए, रात्रिकाल में कलशस्थापन व कलश विसर्जन नहीं करना चाहिए।
कलश किस धातु का होना चाहिए?
इसके संदर्भ में भविष्य पुराण के मध्यम पर्व के द्वितीय भाग के पञ्चम अध्याय में वर्णित यह श्लोक निर्देश करता है कि-
स्वर्ण वा राजतं वाऽपि ताम्रं मृण्मयजन्तु वा।
अकालमब्रणं चैव सर्व लक्षण संयुताम्॥
अर्थात् स्वर्ण, चाँदी, रजत, काँसा, ताँबे का अथवा इसके अभाव में मिट्टी का कलश सर्वोत्तम माना गया है। किन्तु, स्टील /लौह के धातु से बने कलश का सदैव त्याग करना चाहिए।
कलश पर नारियल कैसे रखना चाहिए?
इसके विषय में भी वर्णित शास्त्रीय प्रमाणोक्त श्लोक यह कहता है कि –
अधोमुखम् शत्रु विवर्धनाय।
उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्धयै।
प्राचीमुखम् वित्त विनाशणाय।
तस्माद् शुभं सम्मुखम् नारिकेल॥
अर्थात् नारियल का मुख हमेशा यजमान के ओर हीं रहना चाहिए।
क्योंकि नारियल का मुख यदि अधोमुखी हो तो शत्रु वृद्धि, पूर्व की ओर हो तो धन का विनाश, निचे हो तो रोग वृद्धि तथा कर्त्ता (यजमान) की ओर हो तो शुभफलदाई होता है।
कलश की स्थापना की उचित दिशा स्थित क्या होनी चाहिए?
सुवासित जलैः पूर्णं सेव्ये कुम्भं प्रपूजयेत्।
कलश्येति मन्त्रेण तीर्थान्यावाहयेत्ततः॥
इसके लिए सर्वश्रेष्ठ ईशान कोण अथवा पूर्व/ उत्तर दिशा उचित है, अर्थात् बायीं ओर की कलश रखने का विधान है।
कलश में कितने और कौन-कौन से पत्ते लगाने चाहिए?
अश्वत्थोदुम्बरः प्लक्ष आम्र न्यग्रोध पल्लवाः॥
अर्थात् जब भी कलश की स्थापना करें तो पाँच विभिन्न प्रकार के पत्ते लगाने चाहिए।
बरगद का, गूलर, पीपल, आम और प्लक्ष के पत्तों का उपयोग करना चाहिए।
संभव ना हो तो केवल आम के पत्ते का प्रयोग कर सकते हैं।
(laatsaab.com में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और लोक आस्थाओं पर आधारित है, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इसे लोगों की सामान्य रुचि को ध्यान में रखते हुए यहां प्रस्तुत किया गया है।)