धर्म-कर्म

जब क्रोधित हनुमानजी के लिए श्री कृष्ण को बनना पड़ा राम, रुक्मिणी बनीं सीता

श्री कृष्ण और रुक्मिणी श्री राम और सीता बनकर हनुमान जी के समक्ष गए। जैसे ही हनुमान जी ने श्री राम और माता जानकी को देखा वो बच्चे की तरह रोने लगे और उनके पैरों में गिर गए।

भगवत पुराण (Bhagwad Puran) के अनुसार यह घटना उस समय की है जब कृष्ण (Krishna) के भाई बलराम (Balram) अपने साहस, पत्नी सत्यभामा (Satyabhama) अपनी खूबसूरती और कृष्ण जी के वाहन गरुड़ (Garud) अपनी शक्ति के नशे में चूर हो गए थे। जब श्री कृष्ण ने यह सब देखा तो उन्होंने उनके घमंड को तोड़ने के लिए एक लीला रची, जिसका किसी को भी आभास नहीं था। एक दिन नारद  मुनि (Narad Muni) इन्द्र देव (Indra Dev) की सभा में आए। उनके सम्मान मे वहां उपस्थित गरुड़ को छोड़कर सभी देवता खड़े हो गए। गरुड़ का ये व्यवहार इन्द्र को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने जब इसका कारण गरुड़ से पूछा तो गरुड़ ने कहा कि मै एक शक्तिशाली पक्षी हूं। और मै ऐसे किसी भी साधु के सम्मान में खड़ा नहीं हो सकता जो केवल इधर से उधर भटक कर दुनिया भर की बाते बनाता हो।

यह सुनकर नारद मुनि को गहरा धक्का लगता है। अगले ही दिन यह बात वो श्री कृष्ण को बताने के लिए उनके महल पहुंच जाते हैं। जैसे ही श्री कृष्ण ने नारद मुनि को देखा तो वो तुरन्त खड़े हो गए। और नारद मुनि के चरणों को धोकर आदर पूर्वक बैठाया। इसके बाद उन्होंने नारद मुनि से देवलोक के बारे में पूछा। तभी नारद जी ने कृष्ण को पूरी घटना सुना दी। गरुड़ के इस व्यवहार पर कृष्ण जी ने नारद मुनि से क्षमा मांगी और उनसे कहा कि वो कृपा करके सत्यभामा को बुलाए।

यह सुनकर पहले तो नारद मुनि चौंक गए कि सत्यभामा का इससे क्या लेना देना?और आखिर वो क्यों बुलाए सत्यभामा को? फिर भी वो सत्यभामा को बुलाने पहुंच जाते हैं। लेकिन सत्यभामा तो अपने श्रृंगार करने में खोई हुई थी। बार बार वो अपने को शीशे मे निहार रहीं थीं। अपने आभूषणों की चमक मे उन्हें कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। तभी नारद मुनि ने उन्हें आवाज लगाई सुनो सत्यभामा, श्री कृष्ण आपको बुला रहे हैं। लेकिन सत्यभामा ने कोई उत्तर नहीं दिया। वो अपनी खूबसूरती मे ही खोयी रहीं।

नारद मुनि को फिर एक बार अपमान का घूंट पीना पड़ा। वो तत्काल श्री कृष्ण के पास गए और पूरी बात बताई। ये सुनकर उन्होंने नारद मुनि से अनुरोध किया कि वो जाए और केले के जंगल मे तपस्या कर रहे हनुमान को बुलाए। हनुमान जी का नाम सुनकर नारद जी फिर चक्कर में पड़ गए कि भला अब हनुमान जी बीच में कहां से आ गए। खैर, कृष्ण जी की बात का अनुसरण करते हुए केले के जंगल मे पहुंच गए। तभी उन्हें हनुमान नजर आए।

नारद जी उनके पास गए और कहा- हे! वायु पुत्र, आपको श्री कृष्ण बुला रहे हैं। तपस्या मे बाधा पड़ते ही हनुमान जी को बहुत क्रोध आया परन्तु उन्होंने अपने आप को सम्भाला और फिर से तपस्या मे लीन हो गए। लेकिन जैसे ही नारदजी ने हनुमान जी से कहा- हे! वायु पुत्र आपको कृष्ण बुला रहे हैं तभी हनुमान जी ने गुस्से में तुरंत प्रश्न किया कि कौन कृष्ण? मैं किसी कृष्ण को नहीं जानता। और यह कहकर वो पुनः ध्यानमग्न हो गए।

तब नारद मुनि को ध्यान आया कि हनुमान तो श्री राम (Shri Ram) के परम भक्त हैं। वो केवल श्री राम की ही पूजा करते हैं और उन्हीं की आज्ञा का पालन करते हैं। राम नाम ही वो दिव्य मंत्र है जो हनुमान से कुछ भी करवा सकता है।इसके बाद नारद मुनि राम नाम की धुन गाने लगे। राम नाम की धुन सुनकर हनुमान सम्मोहित हो गए और नारद मुनि के पीछे पीछे चलने लगे। राम नाम की धुन का सहारा लेकर नारद जी हनुमान जी को द्वारिका तक ले गए। लेकिन वहां पहुंच कर नारद मुनि ने जैसे ही राम नाम की धुन बंद की हनुमान जी होश मे आ गए।

जब हनुमान जी (Hanuman ji) ने देखा कि वो जंगल मे नहीं बल्कि दूसरी जगह आ पहुंचे हैं तो उनको बहुत क्रोध आ गया और उन्होंने द्वारिकापुरी के बगीचे को तहस नहस करना प्रारंभ कर दिया। जब बलराम को पता लगा कि किसी वानर ने नगर में उत्पात मचाया हुआ है तो उन्होंने हनुमान जी को पकड़ने के लिए गरुड़ को भेजा। बलराम को तनिक भी आभास नहीं था कि गरुड़ को वो जिससे लड़ने भेज रहे हैं वो कोई साधारण वानर नहीं है बल्कि स्वयं हनुमान हैं।

हनुमान जी के सामने गरुड़ की शक्ति बहुत तुच्छ थी। हनुमान जी ने पल भर मे ही गरुड़ के घमंड को ध्वस्त कर दिया। अब स्वयं बलराम को हनुमान जी के सामने आना पड़ा उन्हें रोकने के लिए। लेकिन हनुमान जी ने बलराम के घमंड को भी चुटकी में स्वाहा कर दिया।

अब ऐसा कोई नहीं था जो हनुमान जी के क्रोध को शांत कर सकता था। आखिर में बलराम ने श्री कृष्ण को बुलाया। तब श्री कृष्ण ने बलराम को बताया कि वो कोई साधारण वानर नहीं है बल्कि हनुमान हैं। और अब तो उन्हें केवल श्री राम ही रोक सकते हैं। इसके बाद उन्होंने सत्यभामा को बुलाया और कहा कि हे! सत्यभामा, आप सीता बनकर आइए। इसके बाद सत्यभामा वापस चली गई और सुन्दर आभूषण और वस्त्र बदलकर साधारण वस्त्र पहनकर और अपने बाल फैलाकर वापस आयीं।

सत्यभामा को लगा श्री कृष्ण शायद वनवास वाली सीता को देख कर प्रसन्न हो जाएंगे लेकिन श्री कृष्ण तो उन्हें देखकर हंसने लगे और उनसे कहा कि मेरे पास सीता बनकर आइए। सत्यभामा को कुछ समझ नहीं आया। वो वापस गई और फिर खूब सारे आभूषण और बढ़िया सी साड़ी पहनकर आयी। श्री कृष्ण ने उन्हें देखा और जोर जोर से हंसते हुए कहा कि आप तो सीता की जगह आभूषण की दुकान बनकर आ गयी। मैंने आपसे सीता बनकर आने को कहा था। यह सुनते ही सत्यभामा का घमंड चूर-चूर हो गया।

श्री कृष्ण ने इसके बाद रुक्मणी को आवाज लगायी और कहा-हे रुक्मणी! सीता बनकर आईए। यह सुनते ही रुक्मणी श्री कृष्ण के पास भाव विभोर होकर दौड़ी चली आई और अपने पुत्र जैसे हनुमान के बारे में जानकर उनकी आंखों में आंसू झलक आए। क्योंकि हनुमान उन्हें अपनी माता मानते थे। यह देख कर सत्यभामा की आंखे शर्म से नीची हो गई। इसके बाद श्री कृष्ण और रुक्मिणी श्री राम और सीता बनकर हनुमान जी के समक्ष गए। जैसे ही हनुमान जी ने श्री राम और माता जानकी को देखा वो बच्चे की तरह रोने लगे और उनके पैरों में गिर गए।

श्री राम ने उनसे कहा कि मेरे प्रिय हनुमान, मै तुमसे मिलने आया हूं। मैं तुम्हारा त्रेतायुग वाला राम हूं लेकिन द्वापर युग मे मैं केवल कृष्ण हूं और इस समय मैं तुम्हारे सामने राम और कृष्ण दोनों ही रूप मे हूं। यह सुनकर हनुमान भगवान् श्री राम के गले लगकर रोने लगते हैं।