सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु का ध्यान जैसे ही आता है, हृदय में एक चित्र उपस्थित होता है। भगवान श्री हरि विष्णु विश्राम मुद्रा में है और माता लक्ष्मी उनके चरणों के पास बैठी हुई है। जबकि शेष ज्यादातर भगवान सिंहासन पर बैठे हुए दिखाई देते हैं और माता उनके साथ उसी सिंहासन पर विराजमान होती हैं। प्रश्न यह है कि भगवान श्री हरि विष्णु हमेशा विश्राम मुद्रा में क्यों रहते हैं। जबकि सृष्टि का पालन करना एक महत्वपूर्ण काम है।
विश्राम नहीं सदायोगी मुद्रा में होते हैं श्री हरि
शास्त्रों में भगवान श्री हरि विष्णु के विषय में विस्तार से बताया गया है। यह तो सभी जानते हैं कि भगवान विष्णु का निवास क्षीर सागर में है। उनका दरबार नहीं लगता। भगवान विष्णु का आसन शेषनाग हैं। वह कोई निर्जीव वस्तु नहीं है बल्कि ब्रह्मांड के संतुलन का कारण हैं। क्षीर सागर में शेषनाग पर विराजमान भगवान विष्णु अपने चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए होते हैं। उनके शंख को ‘पाञ्चजन्य’ कहा जाता है। चक्र को ‘सुदर्शन’, गदा को ‘कौमोदकी’ और मणि को ‘कौस्तुभ’ कहते हैं। भगवान विष्णु सदायोगी है। यह उनकी योग मुद्रा है। यानी इस मुद्रा में भगवान विष्णु सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं। जिन्हें इसके विषय में पता नहीं होता उनके लिए भगवान विष्णु की सदायोगी मुद्रा के दर्शन विश्राम का भ्रम उत्पन्न करते हैं।
अन्य प्रचलित मुद्राएं
भगवान विष्णु को उनके भक्त सदायोगी मुद्रा में दर्शन करना पसंद करते हैं। क्योंकि यही सबसे सक्रिय अवस्था है लेकिन भगवान विष्णु की दूसरी सबसे प्रचलित मुद्रा में भगवान खड़े हुए दिखाई देते हैं। श्री सत्यनारायण भगवान और तिरुमाला पर्वत पर भगवान वेंकटेश खड़ी हुई मुद्रा में दर्शन देते हैं। इसके अलावा भगवान परमपदनाथ एवं तोताद्री मुद्रा में भगवान सिंहासन पर बैठे हुए दर्शन देते हैं। लेकिन जिस प्रकार एक राजा सिंहासन पर सक्रिय होता है और उसके दर्शन शोभा देते हैं, उसी प्रकार भगवान विष्णु सदा योगी मुद्रा में सर्वाधिक सक्रिय होते हैं और माता लक्ष्मी के साथ उनके दर्शन कल्याणकारी माने जाते हैं।