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‘हॉरर’ फिल्मे समाज में नकारात्मकता फैलाती हैं: शोध

नई दिल्ली: डरावनी फिल्मे (हॉरर मूवी) का स्वयं पर कितनी मात्रा में परिणाम होता है? यह देखनेवालों के ध्यान में नहीं आता। जैसे अच्छे की ओर अच्छा तथा बुरे की ओर बुरा आकर्षित होता है, उसी प्रकार अत्यधिक नकारात्मकतावाली डरावनी फिल्मो का ‘सेट’, उसमें भूतबाधा से ग्रसित व्यक्ति की भूमिका करनेवाला अभिनेता अथवा ऐसा डरावनी […]

नई दिल्ली: डरावनी फिल्मे (हॉरर मूवी) का स्वयं पर कितनी मात्रा में परिणाम होता है? यह देखनेवालों के ध्यान में नहीं आता। जैसे अच्छे की ओर अच्छा तथा बुरे की ओर बुरा आकर्षित होता है, उसी प्रकार अत्यधिक नकारात्मकतावाली डरावनी फिल्मो का ‘सेट’, उसमें भूतबाधा से ग्रसित व्यक्ति की भूमिका करनेवाला अभिनेता अथवा ऐसा डरावनी फिल्मे  देखनेवाले दर्शकों की ओर अधिक मात्रा में नकारात्मक शक्ति आकर्षित होती है । फलस्वरूप संहिता लेखक, निर्देशक और अभिनेता के माध्यम से अधिकाधिक नकारात्मकता प्रक्षेपित करनेवाले फिल्मो का निर्माण होता है, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय के शॉन क्लार्क ने किया । वे इस्तांबुल, तुर्कीस्तान में आयोजित ‘सिक्थ इंटरनेश्‍नल इंटरडिसप्लिनरी कॉन्फ्रेंस ऑन मेमरी एंड द पास्ट’ परिषद में बोल रहे थे । उन्होंने ‘डरावनी फिल्मो का आध्यात्मिक स्तर पर क्या परिणाम होता है?’ यह शोधनिबंध प्रस्तुत किया । इस शोधनिबंध के लेखक महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी तथा सहलेखक शॉन क्लार्क हैं।

क्लार्क ने ‘प्रभामंडल और ऊर्जा मापक यंत्र’ (युनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यूएएस)), बायोवेल (Biowell) और सूक्ष्म परीक्षण के माध्यम से डरावनी फिल्मो के होनेवाले सूक्ष्म परिणामों का अध्ययन करने के लिए किए गए शोध का निष्कर्ष प्रस्तुत किया ।

‘यूएएस’ जांच : जांच के अंतर्गत प्रयोगशाला के स्टुडियों में डरावनी फिल्म देखनेवाले सभी 17 व्यक्तियों की नकारात्मकता में लगभग 107 प्रतिशत वृद्धि हुई । कुछ लोगों के संदर्भ में यह वृद्धि 375 प्रतिशत थी । प्रयोग के पहले जिन व्यक्तियों में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल (ऑरा) था, वह 60 प्रतिशत तक अल्प हुआ तथा कुछ लोगों की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल पूर्णत: नष्ट हुआ ।

‘बायोवेल’ द्वारा किया गया अध्ययन : फिल्म देखने के पूर्व एक व्यक्ति की जांच में उसके सभी चक्र लगभग एक रेखा में थे । उनका आकार भी बहुत बडा था । इसका अर्थ वह व्यक्ति स्थिर और ऊर्जावान थी । डरावनी फिल्म देखने के उपरांत उसके चक्र अव्यवस्थित दिखाई दिए, उनका आकार भी छोटा हो गया था, अर्थात वह व्यक्ति अस्थिर और उसकी सर्वसाधारण क्षमता अल्प हुई दिखाई दी ।

इस शोध द्वारा यही ज्ञात हुआ कि ‘डरावनी फिल्म’ देखने से केवल भावनात्मक परिणाम नहीं होते, अपितु सूक्ष्म स्पंदनों के स्तर पर होनेवाले भयंकर परिणामों का हमें बोध भी नहीं होता । सूर्यास्त के उपरांत अनिष्ट शक्तियों का वातावरण पर अधिक परिणाम होता है, उस समय ऐसी फिल्म देखना अधिक संकटदायक है । 

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