नई दिल्लीः भारत सरकार कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे रही है। टीकाकरण जांच, ट्रैक, इलाज और कोविड-उपयुक्त व्यवहार सहित महामारी से लड़ने के लिए भारत सरकार की पांच सूत्री रणनीति का एक अभिन्न घटक है। हाल ही में कुछ मीडिया रिपोर्टें आई हैं जिनमें आरोप लगाया गया है कि भारत आधा बिलियन खुराक देने के 2021 के अंत जुलाई का लक्ष्य चूक जाएगा। रिपोर्टों में यह भी उल्लेख किया गया है कि सरकार ने मई 2021 में कहा था कि वह जुलाई 2021 के अंत तक 516 मिलियन शॉट्स उपलब्ध कराएगी। ये रिपोर्टें गलत हैं और तथ्यों को स्पष्ट रूप से गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
हो सकता है कि 516 मिलियन वैक्सीन की खुराक के आंकड़ों को विभिन्न स्त्रोतों से उठाया गया हो, जिन्होंने जनवरी 2021 से जुलाई 2021 के अंत तक वैक्सीन की खुराक की संभावित उपलब्धता के बारे में सूचित किया। तथ्य यह हैं कि जनवरी 2021 से 31 जुलाई 2021 तक कुल 516 मिलियन से अधिक वैक्सीन की खुराक की आपूर्ति की जाएगी।
यह उल्लेख करना भी उचित है कि राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को वैक्सीन की खुराक की आपूर्ति अग्रिम आवंटन और उन्हें दी गई अग्रिम सूचना के अनुसार जाती है। महीने भर में विभिन्न शेड्यूल में टीके की आपूर्ति की जाती है। इसलिए एक खास महीने के अंत तक 516 मिलियन खुराकों की उपलब्धता का अर्थ यह नहीं है कि उस महीने तक आपूर्ति की जाने वाली प्रत्येक खुराक का सेवन किया जाएगा/खुराक दी जाएगी। सप्लाई प्रक्रियारत होगी, जो अगले कुछ दिनों तक तब तक उपलब्ध होनी चाहिए जब तक टीके की आपूर्ति नहीं हो जाती।
आज की स्थिति में एक जनवरी, 2021 से अब तक राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को कुल 457 मिलियन खुराकों की आपूर्ति की गई है और 31 जुलाई तक अतिरिक्त 60.3 मिलियन खुराकों की सप्लाई किए जाने की संभावना है। यह जनवरी 2021 से 31 जुलाई 2021 तक आपूर्ति की गई कुल 517 मिलियन खुराक होगी।
इस बात की सराहना की जानी चाहिए कि भारत ने दी गई 440 मिलियन (44.19 करोड़) खुराकों के लैंडमार्क को पार कर लिया है, जो विश्व में हासिल की गई सबसे बड़ी संख्या है और इसे काफी तेज गति से भी किया गया है। इनमें से 9.60 करोड़ ऐसे मामले हैं जिनमें दोनों खुराकें दी गई हैं।
जून 2021 में कुल 11.97 करोड़ खुराक दी गई थी। इसी प्रकार जुलाई 2021 (26 जुलाई तक) महीने के लिए कुल 10.62 करोड़ खुराक पहले ही दी जा चुकी है।
सरकार का प्रयास है कि कोविड टीकों की उपलब्धता के अनुसार कम से कम समय में पात्र नागरिकों को टीकाकरण उपलब्ध करा दिया जाए।
कोविड-19 मृत्यु दर: मिथक बनाम तथ्य
मीडिया में आई कुछ खबरों, जोकि एक ऐसे अध्ययन पर आधारित हैं जिसका अभी पीयर-रिव्यू होना बाकी है और जिसे हाल ही में मेड्रिक्सिव पर अपलोड किया गया था, में यह आरोप लगाया गया कि भारत में कोविड -19 की दो लहरों के दौरान इस बीमारी से कम से कम 2.7 मिलियन से लेकर 3.3 मिलियन मौतें हुईं। यह आरोप 'एक वर्ष में कम से कम 27 प्रतिशत अधिक मृत्यु दर की ओर इशारा करने वाले' तीन अलग-अलग डेटाबेस का हवाला देते हुए लगाया गया।
इन खबरों में यह भी 'निष्कर्ष' निकाला गया कि भारत की कोविड से होने वाली मृत्यु दर आधिकारिक रूप से दर्ज की गई मौतों से लगभग 7-8 गुना अधिक हो सकती है और यह दावा किया गया कि 'इनमें से अधिकांश अतिरिक्त मौतें संभवतः कोविड-19 के कारण हुई हैं’। गलत सूचनाओं वाली ऐसी खबरें पूरी तरह भ्रामक हैं।
यह स्पष्ट किया जाता है कि केन्द्र सरकार कोविड से जुड़े आंकड़ों के प्रबंधन के प्रति अपने दृष्टिकोण में पारदर्शी रही है और कोविड-19 से संबंधित सभी मौतों को दर्ज करने वाली एक मजबूत प्रणाली पहले से मौजूद है। सभी राज्यों और केन्द्र – शासित प्रदेशों को नियमित आधार पर इन आंकड़ों को अपडेट करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
राज्यों/केन्द्र – शासित प्रदेशों द्वारा सूचित की जाने वाली इस प्रक्रिया के अलावा, क़ानून आधारित नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) की मजबूती देश में सभी जन्म और मृत्यु को पंजीकृत करना सुनिश्चित करती है। यह नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) आंकड़ों के संग्रह, उनकी शुद्धि, उनका मिलान और संख्याओं को प्रकाशित करने की प्रक्रिया का अनुसरण करती है। भले ही यह एक लंबी प्रक्रिया है, लेकिन यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी मौत दर्ज होने से न छूटे। इस कवायद के विस्तार और इसके आयाम की वजह से, इन संख्याओं को आमतौर पर अगले वर्ष प्रकाशित किया जाता है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी बार-बार औपचारिक संवाद, विभिन्न वीडियो कॉन्फ्रेंसों और निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुरूप मौतों को दर्ज करने के लिए केन्द्रीय टीमों की तैनाती के माध्यम से राज्यों और केन्द्र – शासित प्रदेशों को इस बारे में सलाह देता रहा है। राज्यों को यह सलाह दी गई है कि वे अपने अस्पतालों की पूरी तरह से जांच करें और किसी भी ऐसे मामले या मौतों के बारे में सूचित करें जो जिले और तारीख-वार विवरण में छूट गई हों ताकि डेटा-संचालित निर्णय लेने की प्रक्रिया को निर्देशित किया जा सके।
इसके अलावा, मई 2020 की शुरुआत में, दर्ज की जा रही मौतों की संख्या में विसंगति या भ्रम से बचने के लिए, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने मृत्यु दर की कोडिंग से संबंधित विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित आईसीडी-10 कोड के अनुसार राज्यों / केन्द्र – शासित प्रदेशों द्वारा सभी मौतें को दर्ज करने के लिए 'भारत में कोविड-19 से संबंधित मौतों को उचित तरीके से दर्ज करने के लिए मार्गदर्शन' भी जारी किया था।
दूसरी लहर के चरम के दौरान, देश भर में स्वास्थ्य प्रणाली का ध्यान चिकित्सा सहायता की जरूरत वाले मामलों के प्रभावी नैदानिक प्रबंधन पर केंद्रित था, जिसकी वजह से कोविड से हुई मौतों की सही सूचना और उसे दर्ज करने में भले ही देरी हुई हो, लेकिन बाद में राज्यों/ केन्द्र – शासित प्रदेशों द्वारा इस स्थिति को ठीक कर लिया गया। भारत में मजबूत और कानून-आधारित मृत्यु पंजीकरण प्रणाली के मद्देनजर संक्रामक रोग और इसके प्रबंधन के सिद्धांतों के अनुरूप कुछ मामले जानकारी में आने से रह जा सकते हैं, लेकिन मौतों के दर्ज होने से छूटने की कोई संभावना नहीं है।
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि कोविड महामारी जैसे गंभीर और लंबे समय तक चलने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के दौरान दर्ज की गई मृत्यु दर में हमेशा कुछ अंतर होगा। मृत्यु दर के बारे में बेहतर शोध अध्ययन आमतौर पर इस किस्म की घटना के बाद उस समय किए जाते हैं जब मृत्यु दर से संबंधित आंकड़ा विश्वसनीय स्रोतों के जरिए उपलब्ध होता है। इस तरह के अध्ययनों के लिए पद्धतियां अच्छी तरह से स्थापित हैं। इसके लिए आंकड़ों के स्रोतों के साथ – साथ मृत्यु दर की गणना से जुड़ी मान्य अवधारणाओं को भी परिभाषित किया गया है।
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