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Joshimath Sinking: 47 साल पहले चेते होते तो नहीं होती तबाही

चीन की सीमा से सटे चमोली जिले के जोशीमठ कस्बे में हो रहे भूस्खलन के बारे में 47 साल पहले ही सिस्टम अलर्ट हो जाता तो आज यह स्थिति नहीं आती।

चीन की सीमा से सटे चमोली जिले के जोशीमठ कस्बे में हो रहे भूस्खलन के बारे में 47 साल पहले ही सिस्टम अलर्ट हो जाता तो आज यह स्थिति नहीं आती।

वर्ष 1976 में उत्तर प्रदेश के काल में तत्कालीन गढ़वाल मंडलायुक्त महेश चन्द्र मिश्र की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञों की समिति ने जोशीमठ में ऐसे खतरों के प्रति आगाह किया था।

साथ ही पुराने भू-स्खलन क्षेत्र में स्थित इस शहर में जल निकासी की पुख्ता व्यवस्था करने और अलकनंदा नदी से होने वाले भू-स्खलन को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने के सुझाव दिए। फिर कुछ नालों का निर्माण कराया गया, लेकिन बाद में इस तरफ को बंद कर दिया गया। इसी उपेक्षा का परिणाम आज सबके सामने है।

समुद्र तल से 2500 से 3050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित जोशीमठ शहर का धार्मिक और सामरिक महत्व है। यह देश के चारधामों में से एक बद्रीनाथ की शीतकालीन गद्दी है और साथ ही सेना और अर्धसैनिक बलों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव भी है। यह खूबसूरत पहाड़ी शहर इन दिनों वहां हो रहे भूस्खलन और इमारतों में लगातार आ रही दरारों के कारण चर्चा में है।

अलकनंदा की बाढ़ ने जोशीमठ और अन्य स्थानों पर तबाही मचाई।

शहर पर मंडरा रहे अस्तित्व के खतरे को देखकर स्थानीय लोग आक्रोशित हैं।

सरकार भी समस्या के समाधान के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।

प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जा रहा है और स्थिति से निपटने के लिए एक कार्य योजना तैयार की जा रही है।

इस परिदृश्य के बीच एक बड़ा सवाल यह भी तैर रहा है कि व्यवस्था जिस तरह की सक्रियता अभी दिखा रही है, अगर वह 1976 में ही जाग गई होती तो आज ऐसी स्थिति पैदा नहीं होती. दरअसल, अविभाजित उत्तर प्रदेश के काल में अलकनंदा नदी की बाढ़ ने जोशीमठ समेत अन्य जगहों पर तबाही मचाई थी. तब कई घरों में दरारें भी आई थीं।

इसके बाद 8 अप्रैल 1976 को सरकार ने गढ़वाल के तत्कालीन संभागीय आयुक्त महेश चन्द्र मिश्र की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया।

इसमें लोनिवि, सिंचाई विभाग और रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज (अब आईआईटी) के विशेषज्ञों के साथ भूवैज्ञानिकों के अलावा स्थानीय बुद्धिजीवियों को भी शामिल किया गया था।

शहर भूस्खलन से मलबे के ऊपर बनाया गया
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट, जो 18 सदस्यीय मिश्र समिति के सदस्य थे, के अनुसार तब समिति ने जोशीमठ सहित पूरे क्षेत्र का गहन अध्ययन किया।

यह पता चला कि पूर्व में कुंवारी दर्रे के पास भूस्खलन के कारण हुए मलबे के ऊपर शहर का निर्माण किया गया था।

यह इलाका 10 किलोमीटर लंबा, तीन किलोमीटर चौड़ा और तीन सौ मीटर ऊंचा है।

कमेटी ने साफ कर दिया था कि ऐसे इलाके में बसावट के लिए पानी निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं होना भविष्य के लिए खतरे की घंटी हो सकती है.

मिश्रा कमेटी ने ये सुझाव दिए
पर्यावरणविद भट्ट ने कहा कि मिश्रा समिति द्वारा तत्कालीन सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में जोशीमठ में बारिश के पानी का उचित प्रबंधन और घरों से निकलने वाले पानी की निकासी, अलकनंदा नदी के कटाव को रोकने के लिए बाढ़ सुरक्षा के उपाय और निर्माण कार्यों को नियंत्रित किया जाना चाहिए. करने के सुझाव दिए गए।

साथ ही सिंचाई, लोनिवि सहित अन्य विभागों के लिए दिशा-निर्देश तय किए।

उन्होंने बताया कि तब पानी की निकासी के लिए दो-चार नालियां बनाई होंगी, लेकिन उसके बाद कोई कदम नहीं उठाया गया।

जोशीमठ के प्रति इस तरह की उपेक्षा अब रंग लाई है।