गोरखपुर: चार दशक तक मानसूनी मौसम में पूर्वांचल के मासूमों के लिए काल का पर्याय रही इंसेफेलाइटिस की रफ्तार योगी सरकार के समन्वित अंतर्विभागीय प्रयासों से थम गई है। 2017 से इंसेफेलाइटिस से प्रभावित मरीजों और इस बीमारी से होने वाली मौतों में बहुत कमी आई है। इंसेफेलाइटिस के इलाज के।लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े केंद्र बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इस वर्ष अभी तक एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के सिर्फ 145 मामले आए हैं जबकि जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) के महज नौ।
1977-1978 से 2016 तक पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रतिवर्ष 1200 से 1500 बच्चे इंसेफेलाइटिस के क्रूर पंजे में आकर दम तोड़ देते थे। सरकारी तंत्र की बेपरवाही से 2016 तक कमोवेश मौत की यह सालाना इबारत लिखी जाती रही। 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने इंसेफेलाइटिस प्रभावित बच्चों के इलाज की व्यवस्था सुदृढ करने के साथ ही बीमारी की जड़ पर प्रहार करना शुरू किया। इलाज के लिए जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) पर इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर (ईटीसी) बनाए गए वहीं गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था को भी मजबूत किया गया। सीएचसी पर पीडियाट्रिक आईसीयू (पीकू) बनाए गए। ब्लॉक स्तर पर ही इलाज का इंतज़ाम होने से रोगियों को त्वरित चिकित्सा सुविधा मिली। वहीं इसके चलते बीआरडी मेडिकल कॉलेज पर पड़ने वाला भार भी कम हुआ।
दूसरी तरफ बीमारी के कारण का निवारण करने के लिए सरकार ने स्वास्थ्य विभाग, पंचायती राज विभाग, शिक्षा, ग्रामीण विकास विभाग, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा वर्कर आदि के लिए समन्वित कार्ययोजना तैयार की। इसके तहत बीमारी से बचाव के लिए जन जागरूकता, गंदगी से मुक्ति, शुद्ध पेयजल पर फोकस किया गया। राज्य सरकार के इस प्रयास में केंद्र सरकार की स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) से भी खासी मदद मिली। एसबीएम के तहत गांवों में घर घर शौचालय बनने से खुले में शौच से निजात मिली। खुले में शौच को इंसेफेलाइटिस का एक प्रमुख कारण माना जाता रहा है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर-बस्ती मंडल के गांवों में बरसात का मौसम इंसेफेलाइटिस के खौफ के लिए भी जाना जाता था। जुलाई, अगस्त और सितंबर माह में बड़ी संख्या में बच्चे इंसेफेलाइटिस की चपेट में आते थे। मौतों की गिनती शुरू हो जाती थी। पर, हालात अब बदल चुके हैं। 2017 से साल दर साल मरीजों और मौत का आंकड़ा धराशायी होता गया है। दिमागी बुखार का खौफ पूर्वांचल के लोगों के दिमाग से दूर होता गया है।
साल दर साल कम हुआ मरीजों व मौतों का ग्राफ
साल एईएस मौत जेई मौत
2017 2247 511 299 76
2018 1047 168 140 19
2019 617 65 117 13
2020 565 57 57 5
2021 145 11 9 0
(अबतक)
इंसेफेलाइटिस उन्मूलन को संसदीय कार्यकाल से ही संघर्षरत रहे योगी
इंसेफेलाइटिस उन्मूलन को लेकर योगी आदित्यनाथ के संघर्ष का पूरा पूर्वांचल साक्षी है। 1998 में पहली बार सांसद बनने के बाद से ही वह इस बीमारी को लेकर सड़क से संसद तक आंदोलनरत रहे। 2017 में मुख्यमंत्री बनने से पहले तक संसद का कोई भी ऐसा सत्र नहीं रहा जब वह इस मुद्दे पर पूर्वी उत्तर प्रदेश की जनता के आवाज न बने हों। इंसेफेलाइटिसरोधी टीकाकरण शुरू कराने में भी योगी की महती भूमिका रही है। मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके प्रयासों का परिणाम सबके सामने है। उनके नेतृत्व में इंसेफेलाइटिस नियंत्रण की सफलता का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई मंचों से कर चुके हैं।
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