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भारत में हैं असंख्य देवता, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष

भारत में असंख्य देवता हैं। इनका लाभ यद्यपि सभी ले सकते हैं किन्तु यही प्राकृतिक आपदा भी पैदा कर सकते हैं और इनको नियंत्रित करना सरल नहीं है। इनको सुर भी कहते हैं क्योंकि ये क्रिया की प्रतिक्रिया के लिए बाध्य होते हैं।  कुछ प्रत्यक्ष देवता जैसे सूर्य, चंद्रमा, जल, वायु, और पृथ्वी और गृह […]

भारत में असंख्य देवता हैं। इनका लाभ यद्यपि सभी ले सकते हैं किन्तु यही प्राकृतिक आपदा भी पैदा कर सकते हैं और इनको नियंत्रित करना सरल नहीं है। इनको सुर भी कहते हैं क्योंकि ये क्रिया की प्रतिक्रिया के लिए बाध्य होते हैं। 

कुछ प्रत्यक्ष देवता जैसे सूर्य, चंद्रमा, जल, वायु, और पृथ्वी और गृह नक्षत्र, जिसे हम देख सकते हैं। इनको भौतिक देवता भी कहते हैं। 

कुछ अप्रत्यक्ष देवता जो ज्ञान के पिंड या बॉडी ऑफ नॉलेज हैं जैसे फिजिक्स, केमिस्ट्री, धर्म, राजनीति, अर्थ शास्त्र। ये देवता, अज्ञानी प्रणियों को दिखाई नहीं देते किंतु भौतिक जगत जिस तरह कठपुतली की तरह चलता हुआ दिखता है उसे चलाने वाले यही अप्रत्यक्ष देवता ही होते हैं। 

अप्रत्यक्ष देवता की साधना या वैज्ञानिक खोज करने से भौतिक जगत का पूर्वानुमान किया जा सकता है और विपत्ति टाली जा सकती है। 

कोई भी कलाकार, कवि, या गायक या योद्धा बिना आत्म विश्वास के अपनी मौलिक प्रस्तुति नहीं दे सकता। यह आत्म विश्वास जब आता है तभी विचार या ज्ञान के पिंड या अप्रत्यक्ष देवता अदृश्य रह कर प्राणी में कला या विचारों का संचार करते हैं। अर्थात्, देवता चाहे वे प्रत्यक्ष हों या अप्रत्यक्ष दोनों ही स्थिति में प्राकृतिक होते हैं और इसके पीछे आत्म विश्वास का होना आवश्यक है। आत्म विश्वास चेतन है और देवता जड़। जड़, प्रकृति के नियमों की तरह है जो निष्क्रिय नहीं होता किंतु क्रिया करने पर प्रतिक्रिया करने के लिए बाध्य है। 

ऋषि मुनि या वैज्ञानिक, उन अप्रत्यक्ष देवता का वर्णन अपनी बनाई हुई सांकेतिक भाषा जैसे गणित या सिद्धान्त की सहायता से करते रहते हैं। लेकिन लोगों की रुचि कभी भी गणित या सिद्धान्त के अध्ययन में नहीं रही । ऋषि मुनि की यह एक समस्या रही थी कि कैसे भौतिक जगत के बंधन में पड़े पशुओं अर्थात जो बंधे हुए हैं आत्म विश्वास और अप्रत्यक्ष देवताओं के अनुभव से उनको मुक्त किया जा सके। 

इसी उद्देश्य को लेकर ऋषि मुनि ने अलग अलग पुराण और कथा रची। इन कथाओं में वैज्ञानिक प्रयोग और सिद्धांतों को कहानी या कथा या तात्कालिक इतिहास के उदाहरण को समझने में लगाया गया है। सिद्धांतों को कथा का चरित्र बना दिया गया ।
 
पुराण का लेखन उसी तरह है जैसे मैं लिख रहा हूं-

अनंत काल में, भवसागर नाम के एक देश में विज्ञान नाम का एक राजा हुआ। उसके दो पुत्र जिनका नाम फिजिक्स और केमिस्ट्री थे और, दो पुत्रियां मनोविज्ञान और जीव विज्ञान थीं। 

बड़े होने पर मनोविज्ञान ने अपने ही पिता विज्ञान से से विवाह कर लिया और उससे अर्थ शास्त्र नाम की सुंदर पुत्री का जन्म हुआ। उस सुंदर पुत्री, अर्थ शास्त्र  ने फिजिक्स पर मोहित हो, विवाह किया और उनका एक पुत्र जिसका नाम टेक्नोलॉजी हुआ का जन्म हुआ। उसके ख्याति इतनी फैली कि उसे कैपिटल भी कहा जाने लगा। वह मूर्ख था किंतु उसकी शक्ति अदभुत थी। इसी लिए टेक्नोलॉजी को बहला फुसलाकर उसका आयुध निर्माणी असुर, लाभ लेते थे और भवसागर में अत्याचार बढ़े। फिजिक्स के सूर्य और जल आदि कई प्रत्यक्ष देवी पत्नियां थीं। उनसे मैकेनिक्स,इलैक्ट्रोमैग्नेटिज्म  नाम के दो शक्तिशाली पुत्र हुए। और ऑप्टिक्स और थर्मोडायनामिक्स  नाम की दो सुंदर पुत्रियां। थर्मोडायनामिक का स्वभाव उग्र था और उसने मैकेनिक्स से विवाह कर एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम हीट इंजन था। इस तरह भवसागर में देवताओं का परिवार अनंत काल तक राज्य करता रहा। 

इस पुराण कथा को पढ़ कर असंख्य लाेग उनको व्यक्ति और इतिहास मान कर पूजा पाठ करते रहे। फिजिक्स केमिस्ट्री और अन्य पारिवारिक सदस्यों का मंदिर बना दिया और लोगों को कथा याद हो गई। यह कथा एक परंपरा बन गई जबकि इस कथा का खूब प्रचार मनोरंजन की तरह हुआ लेकिन इसे समझने की कोई आवश्यकता नहीं लगी। इस का लाभ यह था कि ज्ञान का अस्तित्व बना रहा जबकि समझा नहीं गया। लोग परंपरा के कारण उस उत्तम ज्ञान को गधे की तरह ढोते रहे और उसी के कथारस को पी कर आनंद लिया। 

एक दिन वह भी आया कि किसी ने उस कथा के शब्दों और तत्व पर चिन्तन किया और उसे तब इस रहस्य का पता चला। उसे तब देवताओं के दर्शन हुए और आत्म विश्वास से उसने चेतना को पुनः प्राप्त किया। उस चेतना युक्त प्राणी ने पारंपरिक तरीके से पुराण का रस लेने वाले गधों का खूब सम्मान किया और उनका सदा कृतज्ञ रहा। उनको गुरु भी कहा जबकि वे गुरु स्वयं भी कुछ नहीं जानते थे और एक ट्रैफिक सिग्नल पर खड़े मार्ग दिखा रहे थे और वे स्वय उस गंतव्य पर कभी नहीं गए। 

देवताओं के यही व्याख्या उनको उत्साह देने के लिए है जो चेतना युक्त प्राणी हैं और उनको परंपरा से बंधे पुराण को समझने में रुचि हुई है और वे देवताओं के दर्शन योग्य बन सकते हैं।

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