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जानें कहां है एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग! जिसकी भीम ने की थी स्थापना

शिवलिंग के रुप में भगवान शिव की उपासना सृष्टि के आरंभ से ही की जाती है। भारत में शिवलिंग के रुप में कई शिव मंदिर स्थापित हैं जो की देश-विदेश हर जगह प्रसिद्ध हैं। इन्हीं शिवलिंगों में से भारत में एक एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है। इस शिवलिंग की स्थापना द्वापर युग में की […]

शिवलिंग के रुप में भगवान शिव की उपासना सृष्टि के आरंभ से ही की जाती है। भारत में शिवलिंग के रुप में कई शिव मंदिर स्थापित हैं जो की देश-विदेश हर जगह प्रसिद्ध हैं। इन्हीं शिवलिंगों में से भारत में एक एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है। इस शिवलिंग की स्थापना द्वापर युग में की गई थी। महाभारत काल में भीम ने स्वयं इस शिवलिंग की स्थापना की थी।

पृथ्वीनाथ मंदिर में स्थापित है ये शिवलिंग
दरअसल, हम जिस शिवलिंग की बात कर रहे हैं वो उत्तर प्रदेश के गोंड़ा जिले के खरगपुर गांव में स्थित है। यह मंदिर पृथ्वीनाथ नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें एशिया का सबसे बड़े शिवलिंग स्थापित है। सबसे बड़े शिवलिंग के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित जिसके अनुसार, एक दिन क्षेत्रीय निवासी पृथ्‍वीनाथ अपना मकान बनवाने के लिए खुदाई करवा रहे थे। उसी रात उन्‍हें सपने में पता चला कि उसी स्‍थान पर और नीचे सात खंडों में शिवलिंग दबा हुआ है। पृथ्‍वीनाथ को एक खंड तक शिवलिंग खोजने का निर्देश हुआ। इसके बाद अगले दिन ही पृथ्‍वीनाथ ने एक खंड तक खुदाई करवाई जिसके बाद वहां से शिवलिंग प्राप्त हुआ। इसके बाद ही यहां शिवलिंग की पूजा-अर्चना शुरु हुई और यहां शिवलिंग की स्थापना हुई और वह मंदिर पृथ्वीनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
   
अज्ञातवास के दौरान की थी शिवलिंग की स्‍थापना
किंवदंतियों के अनुसार, महाभारत काल में यानी कि द्वापर युग में पांडव पुत्र भीम ने अज्ञातवास के दौरान ही इस शिवलिंग की स्‍थापना की थी। बताया जाता है कि बकासुर नामक दानव नें बहुत आतंक मचा रखा था और लोगों को बहुत परेशान कर रखा था। उसी वक्त भीम अपने भाईयों के साथ अज्ञातवास काट रहे थे और जब भीम को इस बात का पता चला तो भीम नें बकासुर नामक दानव से लोगों को बचाया और आतंक से छुटकारा दिलवाया।
   
पृथ्‍वीनाथ की महिमा दूर-दूर तक फैली
बताया जाता है की वो दानव ब्राह्मण कुल का था और इससे भीम पर ब्रह्महत्या का पाप लगा था। इसी दोष से मुक्त होने के लिये भीम ने शिवलिंग की स्थापना की थी। हालांकि बहुत वर्षों बाद यह धीरे-धीरे जमीन में समा गया था लेकिन मुगलकाल में एक सेनापति ने शिवलिंग का जीर्णाेद्धार करवाकर यहां पूजा-अर्चना की। पृथ्‍वीनाथ की महिमा दूर-दूर तक फैली है। यहां भारत के अलावा नेपाल से भी भक्‍त पूजा-अर्चना करने आते हैं। मंदिर में हर साल तीन मेलों का आयोजन किया जाता है। शिवरात्रि और सावन पर तो यहां अद्भुत नजारा होता है। भक्‍तों का तांता लगा रहा है। मान्‍यता है कि भोलेनाथ के इस मंदिर में मांगी गई हर मुराद पूरी हो जाती है।

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