विविध

जानिए क्यों कुंवारी है नर्मदा नदी?

नदियां हमारी आस्था की प्रतीक रही है। हर नदी का अपना इतिहास, अपनी कहानियां हैं। नर्मदा की बात करें तो यह केवल नदी नहीं है, बल्कि इसे ‘मां नर्मदा’ कहकर संबोधित किया जाता है।

नदियां हमारी आस्था की प्रतीक रही है. हर नदी का अपना इतिहास, अपनी कहानियां हैं.नर्मदा की बात करें तो यह केवल नदी नहीं है, बल्कि इसे ‘मां नर्मदा’ कहकर संबोधित किया जाता है. भारत की सबसे लंबी नदियों में शुमार इस नदी का अपना पौराणिक इतिहास है. कहा जाता है कि सभी नदियों में केवल नर्मदा ही हैं जो कुंवारी हैं. उनका बहाव और गति इतनी तेज है कि उसे साध पाने की ताकत बड़े से बड़े बांध में भी नहीं है.मां नर्मदा की महानता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे इकलौती हैं जिस पर पुराण लिखा गया. ‘नर्मदा पुराण’ हमेशा से लोगों का मार्ग दर्शन करता आया है. पर जब भी बात होती है कि नर्मदा के उल्टे बहाव की तो अलग-अलग तथ्य निकल कर आते हैं. वैज्ञानिकों ने इसे अपने तरीके से समझा है पर वे भी इसके पौराणिक कारण पर एक मत होते नजर आते हैं.नर्मदा के उल्टे बहाव और उनके कुंवारे रहने के बीच में गहरा संबंध है. ​

शिव के पसीने से बनी थी नर्मदामत्स्यपुराण में नर्मदा की महिमा के बारे में बताया गया है. इसके अनुसार यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगाजल उसी दिन और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है. इस पवित्र नदी के अवतरण की कथा काफी रोचक है. जिसका जिक्र वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड़ में किया है.इसके अनुसार भगवान शिव अमरकण्टक के मैखल पर्वत पर ध्यान कर रहे थे. तेज गर्मी के कारण उनका शरीर तप रहा था और लगातार पसीना बह रहा था. इसी पसीने के प्रवाह से एक कन्या की उत्पत्ति हुई. यह कन्या शिव के चरणों में बैठ गई. फिर जब भगवान शिव ने अपने नेत्र खोले, तो उन्हें अपने सामने लगभग 12 साल की एक बच्ची दिखाई दी.

उन्होंने उस रूपवति कन्या का नाम नर्मदा रखा.इस तरह से नर्मदा का उत्पत्ति भगवान शिव के पसीने से हुई और चूंकि वह मैखल पर्वत पर थी इसलिए आगे चलकर उन्हें राजा मैखल की पुत्री के नाम से जाना गया. नर्मदा ने भगवान शिव के आर्शीवाद से उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी क्षेत्र में 10 हजार दिव्य वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था.

फलस्वरूप भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि ‘तुम्हारा कभी नाश नहीं होगा. तुम्हारे हर कण में मेरा वास होगा.’यही कारण है कि नर्मदा से निकले हर कण, हर पत्थर को शिवलिंग समझकर पूजा जाता है. नर्मदा नदी के तट पर ‘नर्मदेश्वर शिवलिंग’ विराजमान है. हिंदू धर्म में शिवलिंग स्थापना के लिए पाषण के शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा करना अनिवार्य है.जबकि, नर्मदा नदी से निकले शिवलिंग स्वप्रतिष्ठित हैं.स्कंद पुराण में बताया गया है कि राजा-हिरण्यतेजा ने चौदह हजार दिव्य वर्षों की घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था. साथ ही वरदान स्वरूप उनसे नर्मदा जी को पृथ्वी तल पर आने आग्रह किया था.शिव जी के आदेश से नर्मदा जी मगरमच्छ के आसन पर विराज कर धरती पर अवतरित हुई थी.पुराण में बताया गया है कि केवल नर्मदा नदी ही हैं जो कुंवारी हैं. इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. जिसके अनुसार मैखल राज की पुत्री नर्मदा गुणवती और रूपवति थी. मैखल राज ने उनके विवाह के लिए अनोखी शर्त रखी. उन्होंने घोषणा की कि जो भी राजकुमार गुलबकावली के दुर्लभ पुष्प उनकी पुत्री के लिए लाएगा वे अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ कर देंगे.

नद राजकुमार शोण भद्र {नद यानी नदी का पुरुष रूप} ने नर्मदा के रूप और गुणों के बारे में सुन रखा था. वे चाहते थे कि नर्मदा उनकी पत्नी बने. इ​सलिए वे सबसे पहले गुलबकावली के दुर्लभ पुष्प लेकर मैखल राज के पास पहुंचे. मैखल उनकी योग्यता से प्रभावित हुए और अपनी बेटी का विवाह उनसे तय कर दिया.

किन्तु, उस वक्त न तो सोनभद्र ने नर्मदा को देखा था न ही नर्मदा अपने होने वाले पति को देख पाईं. दोनों ने केवल लोगों की बातों में एक दूसरे का जिक्र सुना था. नर्मदा की सखियों ने उन्हें बताया कि शोण भद्र बेहद बलशाली राजकुमार हैं. उनका रूप जितना लुभावना है वे उससे ज्यादा मधुर बोलते हैं. यह सब सुनकर नर्मदा बिना देखे ही शोण भद्र से प्रेम करने लगी.वे मन ही मन में उन्हें अपना पति स्वीकार कर चुकी थीं.

विवाह के दिन अभी दूर थे और पिता की आज्ञा न होने के कारण नर्मदा शोण भद्र से मिल नहीं सकती थी. इसलिए उन्होंने अपनी सखी जुहिला (यह आदिवासी नदी मंडला के पास बहती है) से कहा कि वे शोण भद्र को एक प्रेम पत्र भेजना चाहती हैं. जुहिला ने उनकी मदद का आश्वासन दिया. नर्मदा ने अपनी सारी भावनाओं को समेंटकर एक पत्र शोण भद्र के नाम लिखा और उसे जुहिला को देते हुए कहा कि यह राजकुमार को दे आओ.

जुहिला पत्र लेकर राजकुमार शोण भद्र के महल पहुंची. चूंकि वह पहली बार राजकुमार से मिल रही थी इसलिए नर्मदा ने उसे अपने वस्त्र और आभूषण पहना दिए थे. जैसे ही शोण भद्र ने जुहिला को देखा उन्हें लगा कि जो चरित्र नर्मदा का बताया गया है वह साकार हो गया. उन्हें लगा कि वह नर्मदा है. वहीं दूसरी ओर जुहिला शोण भद्र के रूप पर मोहित हो गई. जब शोण भद्र ने उन्हें नर्मदा समझा तो ​जुहिला ने उस गलतफहमी को बने रहने दिया और राजकुमार के नजदीक आ गई.

वहीं नर्मदा जुहिला का इंतजार कर रहीं थी. जब काफी देर तक जुहिला वापस नहीं आई तो वे शोण भद्र के महल पहुंची. जहां उन्होंने जुहिला और शोण भद्र को साथ में देखा. नर्मदा यह देखकर बर्दाश्त न कर सकतीं. शोण भद्र नर्मदा को देखकर आश्चर्य से भर गए और उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ. नर्मदा गुस्से में थी और उसके असर से धरती पर उनका बहाव तेज हो गया.

शोण भद्र ने खुद को नर्मदा के सामने झुका दिया पर वे उन्हें देखे बिना वहां से उल्टे पांव लौट गईं. उसी क्षण धरती पर नर्मदा का बहाव उल्टा हो गया. शोण भद्र नर्मदा के पीछे भागे और उन्हें रोकने का प्रयास किया पर वे वापस नहीं आई.नर्मदा शोण भद्र के छल से इतनी दुखी थीं कि उन्होंने आजीवन विवाह न करने का प्रण ले लिया. जो नर्मदा कल तक बंगाल सागर की यात्रा करती थी उसने अरब सागर में समा जाने का निर्णय ले लिया.