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सरकार, प्रबंधन, किसान और रीगा चीनी मिल का दर्द!

चीनी मिलें बंद होने से खेती और किसानी दोनों की कमर टूट गई है और नेताओं के लिये यह सिर्फ चुनावी मुद्दा बनकर रह गया।

किसान गन्ने की खेती कर खुशहाल रहते थे, उन्हें इससे नकद पैसे मिलते थे, जिससे परिवार चलाना आसान होता था। चीनी मिल से अन्य रोजगार भी मिल जाता था। लेकिन चीनी मिलें बंद होने से खेती और किसानी दोनों की कमर टूट गई है और नेताओं के लिये यह सिर्फ चुनावी मुद्दा बनकर रह गया।

यह दर्द चंपारण, मुजफ्फरपुर, सारण से लेकर बिहार के अनेक क्षेत्रों के किसानों का है जहां पिछले चार दशकों में एक-एक कर एक दर्जन से अधिक चीनी मिलें बंद हो चुकी हैं।

पिछले कुछ दशकों में बंद हुई चीनी मिलों में मोतिहारी, चकिया, मुजफ्फरपुर की मोतीपुर चीनी मिल, सारण की मढ़ौरा चीनी मिल, गोपालगंज की हथुआ चीनी मिल, नवादा जिले की वारिसलीगंज, मिथिला क्षेत्र में सकरी और लोहट चीनी मिल, पूर्णिया की बनमनखी चीनी मिल, वैशाली की गोरौल चीनी मिल और गया की गुरारू चीनी मिल शामिल हैं।

इन मिलों के बंद होने से हजारों की संख्या में लोग बेरोजगार हुए हैं, साथ ही गन्ने की खेती पर आधारित कृषि व्यवस्था ध्वस्त हो गई। सीतामढ़ी जिले के रीगा चीनी मिल के नए सत्र में शुरू होने को लेकर किसानों मे संशय की स्थिति बनी हुई है।

हालात यह है कि किसानों का तकरीबन 100 करोड़ का गन्ना खेतों में खड़ा है जबकि 80 करोड़ की राशि किसानों का चीनी मिल प्रबंधन पर बकाया है। अगर इस हालात में चीनी मिल का काम शुरू नहीं हुआ तो किसानों मे हाहाकार की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी।

कहते हैं सीतामढ़ी के रीगा चीनी मील का अतीत काफी समृद्धशाली रहा है। इस चीनी मिल की बदौलत इलाके के किसानों की बेटियों की शादियां हुआ करती थीं तो वहीं बीमार किसानों का इलाज। लेकिन हाल के दिनों में चीनी मिल की आर्थिक हालात बेहद खराब हो गई है।

पिछले पांच साल से चीनी मिल आर्थिक बदहाली का सामना कर रहा है। इसी कारण चीनी मिल के ऊपर किसानों का तकरीबन 80 करोड़ रुपया लंबे अरसे से बकाया है। इतना ही नहीं चीनी मिल अपनी आर्थिक बदहाली का हवाला देकर 600 कर्मियों को भी काम से बाहर का रास्ता दिखा चुका है।

मिल प्रबंधन के इस फैसले से मिल में काम करने वाले कर्मियो में हाहाकार की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। 600 कर्मी पिछले छह महीने से पूरी तरीके से बेरोजगार होकर सड़कों पर भटक रहे हैं। मिल प्रबंधन ने अपनी बदहाली को लेकर मिल गेट पर अपनी बदहाली का इश्तेहार भी चिपका दिया है।

वहीं दूसरी ओर सीतामढ़ी के रीगा चीनी मिल से जुड़े तकरीबन 50 हजार किसान भी परेशान हैं। नए सत्र में चीनी मिल का पेराई सत्र शुरू होगा या नहीं, किसानों मे इस बात को लेकर संशय की स्थिति है। किसानों का 100 करोड़ का गन्ना खेतों में खड़ा है, जो चीनी मिल के पेराई सत्र का इंतजार कर रहा है। किसानों का 80 करोड़ रुपया चीनी मिल पर भी लंबे अरसे से बकाया है। ऐसे में अगर चीनी मिल नहीं शुरू हुआ तो किसानों मे हाहाकार की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।

ईख उत्पादक संघ के जिलाध्यक्ष नागेन्द्र प्रसाद सिंह का कहना है कि अगर चीनी मिल शुरू नहीं हुआ तो सीतामढ़ी के रीगा चीनी मिल से जुड़े 50 हजार किसानों मे हाहाकार की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। किसानों के नकदी फसल का एकमात्र सहारा जाने से किसानों की आर्थिक स्थिति पूरी तरीके से खराब हो जायेगी। सीतामढ़ी के इस रीगा चीनी मिल को सरकार की मदद की दरकार है। अगर चीनी मिल को सरकारी मदद नहीं मिली तो इसे आगे चलाना संभव प्रतीत नहीं हो रहा है।

गौरतलब है बिहार में फिलहाल 12 चीनी मिल चालू हालत में हैं। अगर सीतामढ़ी का रीगा चीनी मिल शुरू नहीं हुआ तो उसकी संख्या 11 पर सिमट पर जाएगी। हर साल नबम्बर महीने में चीनी मिल का पेराई सत्र शुरू हो जाता है लेकिन महीना गुजरने को है। अभी तक मिल शुरू करने को लेकर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।

रीगा चीनी मिल के प्रबंधक शशि गुप्ता इस मामले में कहते हैं कि बिना सरकारी मदद के चीनी मिल को चलाना अब संभव नहीं। उन्होंने कहा कि चीनी मिल को चलाने के लिए मिल के मालिक ने अपनी निजी सम्पत्ति तक बेच डाली है, फिर भी किसानों का बकाया कर्ज नहीं चुकता हो सका है।