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ऐसा क्यों कहा जाता है कि ‘गुरु मंत्र को गुप्त रखना चाहिए’?

गुरु साधक को गुरु मंत्र देते हैं। इस गुरु मंत्र के माध्यम से साधक को अपनी उपासना/साधना करनी होती है। परंतु कभी-कभी कहा जाता है कि इस मंत्र को गुप्त रखना चाहिए। ऐसा क्यों कहा जाता है इसके कारण इस प्रकार हैं। 1. साधक की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए गुरु उसे मंत्र देते […]

गुरु साधक को गुरु मंत्र देते हैं। इस गुरु मंत्र के माध्यम से साधक को अपनी उपासना/साधना करनी होती है। परंतु कभी-कभी कहा जाता है कि इस मंत्र को गुप्त रखना चाहिए। ऐसा क्यों कहा जाता है इसके कारण इस प्रकार हैं।

1. साधक की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए गुरु उसे मंत्र देते हैं, तो उसमें उनकी शक्ति होती है। यदि साधक द्वारा वही मन्त्र किसी दूसरे को बताया जाए तो साधक के पास शक्ति न होने से,उस मंत्र से साधना करने से दूसरे को उससे लाभ नहीं होता। यदि ऐसा होता है, तो पहले साधक के लिए दूसरे का अनुभव को सुनकर विक्षिप्त होना संभव है, और वह (प्रथम साधक भी) साधना को बंद करने की संभावना रहती है।

2. गुप्त रखने के लिए कहने से, उसका लगातार स्मरण होता है। इस नियम के अनुसार मंत्र को गुप्त रखना है, ऐसे कहने से मंत्र साधना अधिक होती है।

3. चूंकि हर किसी का मंत्र अलग होता है, इसलिए किसी का मंत्र क्या है, यह जानने से उसे बिल्कुल भी फायदा नहीं होता है।

4. गुरुमंत्र सिर्फ जप नहीं है, यह एक मंत्र है, मंत्र का गलत तरीके से जप किया जाए तो यह मंत्र जप करने वाले दूसरे व्यक्ति को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

‘गुरुमंत्र गुप्त रखना चाहिए’, साधकों और गुरुबंधुओं से बात करते समय इस नियम का पालन करने की आवश्यकता नहीं है। उनसे चर्चा करते समय मंत्र या किसी साधना को गुप्त रखने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हर कोई इस चर्चा से कुछ सीख सकता है और कोई खतरा नहीं है।

रामानुज को गोष्ठीपूर्ण से गुरु मंत्र ‘ओम नमो नारायणै’ प्राप्त हुआ। गोष्ठीपूर्ण जी ने उसे मंत्र को गुप्त रखने का आदेश दिया। जब गुरु ने कहा, ‘‘यह मंत्र मुक्ति दिलाता है’’, तो वे पास के एक मंदिर के शिखर पर चढ़ गए और ऊंची आवाज में मंत्र का जाप करने लगे। मंत्र बहुत लोगों के कानों में पड़ने लगा। यह सुनकर गोष्ठीपूर्ण जी बहुत क्रोधित हो गये और रामानुजन से कहा, ‘‘आपने गुरु के आदेश का पालन नहीं किया है। तुम्हें नर्क में जाना होगा।’’ रामानुज ने उत्तर दिया, ‘‘आपकी कृपा से, यदि इस मंत्र से सभी स्त्री-पुरुषों मुक्त होंगे, तो मैं सुखपूर्वक नरक में जाने को तैयार हूँ।’’ यह सुनकर गोष्ठीपूर्ण जी ने प्रसन्न हो कर कहा, ‘‘आज से विशिष्टाद्वैतवाद, रामानुज दर्शन, आपके नाम से ज्ञात होगा।’’

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