नई दिल्लीः बिजली की मांग में वृद्धि और मानसून के बाद कोयले की आपूर्ति में कमी ने आगे आने वाले 6 महीने तक देश बिजली की कमी का सामना कर सकता है। इसका असर बिजली के बिल पर भी हो सकता है। हालांकि, कई अन्य देश भी ऊर्जा संकट का सामना कर रहे हैं क्योंकि कोरोनो वायरस-प्रेरित प्रतिबंध हटाए जाने के बाद बिजली की मांग में वृद्धि हुई है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि भारत में कोयले की कमी छह महीने तक रह सकती है। सिंह ने अखबार को बताया कि भारत में मौजूदा कमी हर साल मानसून के बाद सामान्य आपूर्ति संकट से कहीं अधिक है।
ऊर्जा मंत्री राजकुमार सिंह मंत्री ने अखबार को बताया कि मुझे नहीं पता कि हम अगले पांच-छह महीनों में ऊर्जा के मामले में सहज हो पायेंगे कि नहीं। आमतौर पर अक्टूबर की दूसरी छमाही में मांग कम होने लगती है। जब मौसम, ठंडा होने लगता है। लेकिन ये बिजली संकट कुछ समय तक रह सकता है। सरकारी मंत्रालय कोल इंडिया और एनटीपीसी लिमिटेड जैसी सरकारी कोयला कंपनियों से कोयले के खनन को बढ़ाने के लिए काम कर रही है ताकि मांग के मुताबिक बिजली बन सके।
जानकारी के मुताबिक, 30 सितंबर को, 52,530 मेगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता वाले 39 थर्मल प्लांट में तीन दिनों से भी कम समय के लिए कोयले का भंडार था। 14,875 मेगावाट बिजली पैदा करने वाली पंद्रह थर्मल योजनाओं में 30 सितंबर को कथित तौर पर स्टॉक समाप्त हो गया था।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कोयले से चलने वाले 135 पावर प्लांट्स में से आधे से ज्यादा में सितंबर के आखिरी दिनों में औसतन चार दिन का कोयला ही बचा था। 16 पावर प्लांट्स में तो कोयला इतना भी नहीं है कि बिजली बनाई जा सके। इसके उलट अगस्त की शुरुआत में इन प्लांट्स के पास औसतन 17 दिनों का कोयला भंडार था। कोयले की इतनी कमी कभी नहीं देखी गई।
यूपी में बिजली सप्लाई का काम देखने वाली संस्था एसएलडीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक मौजूदा समय में पीक ऑवर में बिजली की डिमांड 20,000 से 21,000 मेगवॉट है। मगर एक्सचेंज से महंगी बिजली लेने के बाद भी 18,000 मेगावॉट तक की ही सप्लाई हो पा रही है। वहीं, उपभोक्ताओं को बिजली सप्लाई करने के लिए पावर कॉरपोरेशन 15 से 20 रुपये प्रति यूनिट तक बिजली खरीद रहा है। इसका असर नए टैरिफ में भी देखने को मिल सकता है।
(एजेंसी इनपुट्स के साथ)
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