नई दिल्लीः आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा ने कहा है कि उत्सर्जन प्रतिबद्धताएं ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देशों के लिए मध्यम अवधि के जोखिम पैदा करती हैं और ऊर्जा की कमी, प्रौद्योगिकी अंतराल पैदा कर सकती हैं और इस तरह मध्यम अवधि के विकास और मुद्रास्फीति के लिए जोखिम पैदा कर सकती हैं।
यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब भारत कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों पर निर्भरता कम करने और उत्सर्जन में कटौती के लिए विश्व स्तर पर दबाव में है। पात्रा ने यह बात दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (डीएसई) और भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई) द्वारा आयोजित श्ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि और विकासश् पर अपने मुख्य भाषण में कही, जिसे आरबीआई ने सोमवार को जारी किया।
पात्रा ने कहा, ‘‘ब्रिक्स के लिए मध्यम अवधि की चुनौतियां जलवायु जोखिम और उत्सर्जन प्रतिबद्धताओं के संदर्भ में उत्पन्न होती हैं, जो ऊर्जा की कमी, प्रौद्योगिकी अंतराल पैदा कर सकती हैं और इसलिए मध्यम अवधि के विकास और मुद्रास्फीति के लिए जोखिम पैदा कर सकती हैं, खासकर बड़े कुल उत्सर्जन वाले देशों के लिए।’’
उन्होंने कहा कि तत्काल चुनौती भारत जैसे शुद्ध आयातकों के लिए बढ़ी हुई कमोडिटी की कीमतों से थी, हालांकि वे ब्राजील और रूस जैसे शुद्ध निर्यातकों के लिए व्यापार लाभ की शर्तें प्रदान करते हैं। पात्रा ने कहा, ‘‘सभी ब्रिक्स के लिए, प्राकृतिक आपदाओं और महामारी के कारण मांग-आपूर्ति असंतुलन के कारण खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों में मुद्रास्फीति जोखिम बढ़ गया है।’’
अपने संबोधन में पात्रा ने कहा कि भारत के विकास में पूंजी संचय का सबसे बड़ा योगदान है और भारतीय निवेश की एक खास बात यह है कि इसे मुख्य रूप से घरेलू बचत द्वारा वित्तपोषित किया जाता है, जिसमें विदेशों से पूंजी प्रवाह केवल एक पूरक भूमिका निभाता है। हालांकि, वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से बचत दर धीमी होने लगी है। आखिरकार, इसने 2012-13 से निवेश दर को नीचे खींच लिया। पात्रा ने कहा, ‘‘उच्च विकास हासिल करने के लिए इस प्रवृत्ति को उलटना महत्वपूर्ण है।’’
(एजेंसी इनपुट के साथ)
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