हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि द्वापरयुग में इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने धरती पर देवकी नंदन के रूप में जन्म लिया था. जन्माष्टमी के दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण के लिए व्रत रखते हैं और रात में 12 बजे श्रीकृष्ण के जन्म के समय व्रत उनका पूजन करते हैं। तमाम मेवा, मिष्ठान और 56 भोग अर्पित करते हैं और पूजन के बाद अपना व्रत खोलते हैं। भगवान कृष्ण के जन्म को हर साल जन्माष्टमी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इसे कृष्ण जन्माष्टमी और गोकुलाष्टमी जैसे नामों से भी जाना जाता है। इस वर्ष यह शुभ पर्व 30 अगस्त (सोमवार) को पड़ रहा है। शास्त्रों में इस व्रत को 100 पापों से मुक्त करने वाला व्रत बताया गया है।
जन्माष्टमी पर व्रत की महिमा
शास्त्रों में एकादशी के व्रत को मोक्षदायी और श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना गया है. लेकिन इसके नियम काफी कठिन होते हैं, इसलिए एकादशी व्रत रख पाना हर किसी के लिए संभव नहीं होता। ऐसे में आप जन्माष्टमी का व्रत रखकर एकादशी के समान पुण्य अर्जित कर सकते हैं। शास्त्रों में इस जन्माष्टमी के व्रत को एक हजार एकादशी व्रत के समान माना गया है।
जाप का मिलता है अनन्त गुना फल
जन्माष्टमी के दिन ध्यान, जाप और रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है। माना जाता है कि इस दिन जाप और ध्यान करने का अनन्त गुना फल प्राप्त होता है. इसलिए जन्माष्टमी की रात में जागरण करके भगवान के भजन कीर्तन करने चाहिए।
अकाल मृत्यु से होती है रक्षा
भविष्यपुराण के मुताबिक जन्माष्टमी का व्रत अकाल मृत्यु से रक्षा करने वाला है. साथ ही कहा जाता है कि यदि गर्भवती महिला इस व्रत को रहे तो उसका बच्चा गर्भ में एकदम सुरक्षित रहता है। उसे श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
तिथि और पूजा का समय
इस वर्ष जन्माष्टमी का पावन पर्व 30 अगस्त (सोमवार) को मनाया जा रहा है। ज्योतिष विशेषज्ञ आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार – मथुरा, गोकुल और श्री कृष्ण से जुड़े बड़े स्थानों पर 30 तारीख को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। हालांकि जन्माष्टमी का व्रत 30 अगस्त को करना है। यह भगवान कृष्ण के जन्म के बाद 31 तारीख को आधी रात को समाप्त होना चाहिए।
जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारंभः 29 अगस्त रात 11.26 बजे
अष्टमी तिथि समाप्तः 30 अगस्त देर रात 2 बजे
रोहिणी नक्षत्रः 30 अगस्त को पूरे दिन और पूरी रात 31 अगस्त को सुबह 9.44 बजे तक
जन्माष्टमी का महत्व
जन्माष्टमी का त्योहार पूरी दुनिया में हिंदुओं द्वारा बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्री कृष्ण भगवान विष्णु के सबसे शक्तिशाली मानव अवतारों में से एक हैं। भगवान कृष्ण हिंदू पौराणिक कथाओं में एक ऐसे देवता हैं, जिनके जन्म और मृत्यु के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है।
भगवद गीता में एक लोकप्रिय कहावत है- ‘‘जब भी बुराई का उदय होगा और धर्म की हानि होगी, मैं बुराई को नष्ट करने और अच्छे को बचाने के लिए अवतार लूंगा।’’ जन्माष्टमी का त्योहार सद्भावना को बढ़ावा देने और दुर्भावना के अंत को प्रोत्साहित करता है। इस दिन को एक पवित्र अवसर, एकता और आस्था के त्योहार के रूप में मनाया जाता है।
जन्माष्टमी पूजा विधि
श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी की रात 12 बजे हुआ था, जिसके कारण यह व्रत सुबह से ही शुरू हो जाता है। दिन भर मंत्रों से भगवान कृष्ण की पूजा करें और रोहिणी नक्षत्र के अंत में पारण करें। मध्यरात्रि में श्रीकृष्ण की पूजा करें। इस दिन सुबह जल्दी उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें।
नहाते समय इस मंत्र का करें ध्यान
"ऊं यज्ञाय योगपतये योगेश्रराय योग सम्भावय गोविंदाय नमो नम:"
इसके बाद इस मंत्र से करें पूजन
"ऊं यज्ञाय यज्ञेराय यज्ञपतये यज्ञ सम्भवाय गोविंददाय नमों नम:"
अब भगवान कृष्ण को पालने में रखकर इस मंत्र का जाप करें
विश्राय विश्रेक्षाय विश्रपले विश्र सम्भावाय गोविंदाय नमों नम:"
जन्माष्टमी पर खीरे का महत्व
जन्माष्टमी पर लोग श्रीकृष्ण को खीरा चढ़ाते हैं। ऐसा माना जाता है कि नंदलाल ककड़ी से बहुत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी परेशानियों को दूर कर देते हैं। मान्यताओं के अनुसार इसे आधी रात के समय काटना शुभ माना जाता है। कारण- मां के गर्भ से बच्चे के जन्म के बाद उसे मां से अलग करने के लिए नाभि को काट दिया जाता है। इसी तरह, खीरा और उससे जुड़े डंठल को गर्भनाल के रूप में काटा जाता है, जो माता देवकी से कृष्ण के अलग होने का प्रतीक है।
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