शनिदेव (Shanidev) के पूरे भारतवर्ष में अनेकों मंदिर हैं परन्तु शनि देवता (Shani Devta) के तीन स्थान ऐसे हैं जिन्हे सिद्धपीठ (Siddhpeeth) के रूप में मान्यता प्राप्त है। ये हैं शनि शिंगणापुर (Shani Shingnapur) (महाराष्ट्र), कोकिला वन (Kokila Van) (वृंदावन) व ग्वालियर (गोमती तट पर)। इन तीनों में भी शनि शिंगणापुर की मान्यता सर्वाधिक है। शनिदेव का यह अनूठा देवस्थान महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित है।
शिंगणापुर तीर्थ की गाथा बहुत ही दिलचस्प है। शनि शिंगणापुर गांव के चारों ओर पर्वतमालाएं हैं। यहां गांव के लोग अपने घरों में ताला नहीं लगाते। घरों, दुकानों पर दरवाजे वगैरह नहीं हैं। कहते हैं कि यदि कोई चोरी की नीयत से किसी का सामान छूता भी है तो शनिदेव उसको अपने ढंग से दंडित कर देते हैं। दरवाजे और चौखट न होने के बावजूद चोरी न होने को यहां के लोग शनिदेव की कृपा मानते हैं।
Also read: Haridwar की हर की पौड़ी अर्थात नारायण के चरण
शनि शिंगणापुर के इतिहास संबंधी गाथा अत्यंत रोचक, अद्भुत व रोमांचक है। शनिदेव के स्वयंभू प्रकट होने संबंधी कई कथाएं इस क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि यहां पास ही एक पानस नाम का नाला बहता है। लगभग पौने दो सौ वर्ष पहले इस इलाके में मूसलाधार बारिश हुई थी। उसी समय नदी में बाढ़ आ गई जिसमें एक काले पत्थर की मूर्ति बहकर आ गई और बेर के पेड़ के साथ अटक कर रुक गई।
पानी उतरने पर गांव के लोग अपने मवेशी चराने के लिए निकल पड़े तो उन्हें काले रंग की एक बड़ी शिला दिखाई दी। गांव वालों ने छड़ी से शिला को छूकर देखा, तो उसके स्पर्श से शिला में से रक्त बहने लगा तथा उसमें एक बड़ा सा छेद भी हो गया। शिला में से रक्त आता देख ग्रामीण डर गए और अपने मवेशी वहीं छोड़ कर भाग खड़े हुए। गांव पहुंच कर जब उन्होंने सारी घटना बताई तो इस चमत्कार को देखने के लिए लोगों का भारी जमघट लग गया।
Also read: यहां डाक से Trinetra Ganesh जी को मिलती हैं सैंकड़ों चिठ्ठियां
कहा जाता है कि उसी रात एक व्यक्ति को शनिदेव ने स्वप्र में दर्शन दिए और कहा मैं तुम्हारे गांव में प्रकट हुआ हूं, मुझे गांव में स्थापित करो।अगले दिन उस व्यक्ति ने यह बात गांव वालों को बताई तो एक बैलगाड़ी लेकर वे मूर्ति लेने पहुंचे। सभी ने मिलकर भारी-भरकम मूर्ति को बैलगाड़ी पर रखने का प्रयास किया परन्तु मूर्ति टस से मस न हुई। कोशिशें व्यर्थ होने पर वे सब गांव लौट आए।
उसके बाद उसी व्यक्ति को शनिदेव ने अगली रात पुन: दर्शन देकर कहा कि जो रिश्ते में सगे मामा-भांजा हों, वे ही मुझे उठाकर बेर की डाली पर रखकर लाएंगे तभी मैं गांव में आऊंगा। अगले दिन यही उपक्रम किया गया। सपने की बात सच निकली। मूर्ति को आसानी से गांव में लाकर स्थापित कर दिया गया।
शिंगणापुर में स्थापित शनिदेव की प्रतिमा के ऊपर भगवान शनिदेव को किसी का आधिपत्य मंजूर नहीं है। शनिदेव का आज जहां चबूतरा है, शनि भगवान की स्वयंभू मूर्ति काले रंग की है। 5 फुट 9 इंच ऊँची व 1 फुट 6 इंच चौड़ी यह मूर्ति संगमरमर के एक चबूतरे पर धूप में ही विराजमान है।
Also read: दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है Tungnath Mandir
यहाँ शनिदेव अष्ट प्रहर धूप हो, आँधी हो, तूफान हो या जाड़ा हो, सभी ऋतुओं में बिना छत्र धारण किए खड़े हैं।उसकी उत्तर दिशा में नीम का एक विशाल वृक्ष है। कहते हैं कि अगर इसकी कोई डाली बड़ी होकर प्रतिमा पर छाया करने की कोशिश करे तो वह अपने आप टूट कर गिर पड़ती है। डाली की छाया कभी भी मूर्ति पर नहीं पड़ी।
यहां आने वाले भक्त भगवे कपड़े पहन कर तेल, काले तिल व काले उड़द चढ़ाकर पूजा करते हैं। यहां एक विशेष कुआं है जिसके पानी से ही शनि भगवान को स्नान करवाया जाता है। उस कुएं का पानी किसी और कार्य के लिए प्रयोग नहीं किया जाता।
शनि शिंगणापुर में विधिपूर्वक स्थापित इस मूर्ति में जो पाषाण शिला दिखाई देती है उस पर घाव का निशान आज भी मौजूद हैं।