धर्म-कर्म

जानिये शनिदेव क्यों नहीं कर पाए बाल कृष्ण का दर्शन?

शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। शनिदेव की कृष्ण भक्ति से जुड़ी दो पौराणिक कथाएं भी ये उजागर करती है कि शनि ने कृष्ण दर्शन के लिए घोर तप किया। पहली कथा अनुसार शनिदेव का विवाह चित्ररथ की कन्या के साथ हुआ था। एक दिन शनि-पत्नी पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से शनिदेव के पास पहुंची […]

शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। शनिदेव की कृष्ण भक्ति से जुड़ी दो पौराणिक कथाएं भी ये उजागर करती है कि शनि ने कृष्ण दर्शन के लिए घोर तप किया।

पहली कथा अनुसार शनिदेव का विवाह चित्ररथ की कन्या के साथ हुआ था। एक दिन शनि-पत्नी पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से शनिदेव के पास पहुंची परंतु शनिदेव श्रीकृष्ण के भक्ति में मग्न थे। चित्ररथ-कन्या शनि की प्रतीक्षा करते करते थक गई। अंत में क्रोधित होकर उन्होंने उन्हें शनिदेव को श्राप देकर शनिदेव की दृष्टि को दूषित कर दिया। दूसरी कथा अनुसार शनिदेव श्रीकृष्ण के परम भक्त हैं। तब श्री कृष्ण ने कोकिलावन में प्रकट होकर आशीर्वाद दिया कि शनि भक्ति करने वाला हर व्यक्ति दरिद्रता, पीड़ा व संकटमुक्त रहेगा।

जब श्री कृष्ण ने जन्म लिया तो सभी देवी-देवता उनके दर्शन करने नंदगांव पधारे। कृष्णभक्त शनिदेव भी देवताओं संग श्रीकृष्ण के दर्शन करने नंदगांव पहुंचे। परंतु मां यशोदा ने उन्हें नंदलाल के दर्शन करने से मना कर दिया क्योंकि मां यशोदा को डर था कि शनि देव कि वक्र दृष्टि कहीं कान्हा पर न पड़ जाए। परंतु शनिदेव को यह अच्छा नहीं लगा और वो निराश होकर नंदगांव के पास जंगल में आकर तपस्या करने लगे। शनिदेव का मानना था कि पूर्ण परमेश्वर श्रीकृष्ण ने ही तो उन्हें न्यायाधीश बनाकर पापियों को दण्डित करने का कार्य सोंपा है। तथा सज्जनों, सत-पुरुषों, भगवत भक्तों का शनिदेव सदैव कल्याण करते है।

कोयल के रूप में श्रीकृष्ण की लीला: पूर्ण परमेश्वर श्रीकृष्ण शनिदेव कि तपस्या से द्रवित हो गए और शनिदेव के सामने कोयल का रूप लेकर प्रकट हुए और कहा-हे शनि देव, आप निःसंदेह अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित हो और आप के ही कारण पापियों, अत्याचारियों और कुकर्मिओं का दमन होता है। आप का ह्रदय तो पिता कि तरह सभी कर्तव्यनिष्ठ प्राणियो के लिए द्रवित रहता है और उन्ही की रक्षा के लिए आप एक सजग और बलवान पिता कि तरह सदैव उनके अनिष्ट स्वरूप दुष्टों को दंड देते रहते हो। श्रीकृष्ण ने शनिदेव से कहा के यह बृज-क्षेत्र उन्हें परम प्रिय है और इसलिए हे शनिदेव आप इसी स्थान पर सदैव निवास करो। क्योंकि कोयल के रूप में आप से मिला हूँ इसी लिए आजसे इस पवित्र स्थान का नाम “कोकिलावन” के नाम से विख्यात होगा।

कोकिलावन स्थित कृष्ण-शनि धाम का महत्व: बृजमंडल के कोकिलावन में आने वाले हर प्राणी पर शनिदेव विनम्र रहते है। कोकिलावन में आने वाले हर भक्त पर शनिदेव के साथसाथ श्रीकृष्ण की कृपा भी बनी रहती है। तथा भक्तों पर शनि ढाईया, साडेसाती, महादशा, अंतर्दशा का शुभ प्रभाव पड़ता है। कोकिलावन धाम स्थित शनि मंदिर यहां आकर्षण का केंद्र है। भक्तगण कोकिलावन के मार्ग की परिक्रमा करते हैं। मान्यता अनुसार श्रीकृष्ण ने जब शनिदेव को दर्शन दिया था तब आशीर्वाद भी दिया कि यह कोकिलावन उनका है। जो कोकिलावन की परिक्रमा कर शनि पूजन करेगा वह कृष्ण के साथ शनि की कृपा भी प्राप्त करेगा।