धर्म-कर्म

आधुनिक विज्ञान भी पृथ्वी पर सूर्य के प्रभाव को मानता है!

सनातन संस्कृति के अनुसार कलयुग के एक मात्र दिखने वाले देवता सूर्य देव (Surya Dev) ही हैं। सूर्य देव को आरोग्य का कारक भी माना जाता है। सूर्य ब्रह्मण्ड की केंद्रीय शक्ति हैं। यह सम्पूर्ण सृष्टि का गतिदाता हैं।

सनातन संस्कृति के अनुसार कलयुग के एक मात्र दिखने वाले देवता सूर्य देव (Surya Dev) ही हैं। सूर्य देव को आरोग्य का कारक भी माना जाता है। सूर्य ब्रह्मण्ड की केंद्रीय शक्ति हैं। यह सम्पूर्ण सृष्टि का गतिदाता हैं। जगत को प्रकाश ज्ञान, ऊजा, ऊष्मा एवं जीवन शक्ति प्रदान करने वाला, रोगाणु और कीटाणु आदि का नाशक कहा गया है। वेदों एवं पुराणों के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान भी इन्ही निष्कर्षो को कहता हैं कि सूर्य मण्डल का केन्द्र व नियन्ता होने के कारण पृथ्वी सौर मण्डल का ही सदस्य हैं। अतः पृथ्वी व पृथ्वीवासी सूर्य द्वारा अवश्य प्रभावित होते हैं। इस तथ्य को आधुनिक विज्ञान भी मानता हैं तथा ज्योतिष शास्त्र में इसी कारण इसे कालपुरूष की आत्मा एवं नवग्रहों में सम्राट माना गया हैं।

भारतीय संस्कृति में सूर्य को मनुष्य के श्रेय एवं प्रेय मार्ग का प्रवर्तक भी माना गया हैं। कहा जाता हैं कि सूर्य की उपासना त्वरित फलदाई होती हैं। भगवान राम के पूर्वज सूर्यवंशी महाराज राजधर्म को सूर्य की उपासना से ही दीर्घ आयु प्राप्त हुई थी। श्रीकृष्ण के पुत्र सांब की सूर्योपासना से ही कुष्ठ रोग से निवृत्ति हुई, यह कथा प्रसिद्ध हैं।

चाक्षुषोपनिषद के नित्य पाठ से नेत्र रोग ठीक होते हैं। इसके अलावा पंच उपासन पद्धतियों का विधान हैं, जिनमें शिव, विष्णु, गणेश सूर्य एवं शक्ति की उपासना की जाती हैं। उपासना विशेष के कारण उपासकों के पांच संप्रदाय प्रसिद्ध हैं। शैव, वैष्णव, गणपत्य एवं शक्ति। वैसे भारतीय संस्कृति एवं धर्म के अनुयायी धार्मिक सामर्थ्य भाव से सभी की पूजा-अर्चना करते हैं। किन्तु सूर्य के विशेष उपासक और संप्रदाय के लोग आज भी उड़ीसा में अधिक है। ज्योतिष में जहां सूर्य को आत्मा माना गया है, वहीं इसका संबंध मनुष्य की तरक्की से लेकर यश कीर्ति तक माना जाता है।

सूर्य पूजा का महत्व
सूर्यदेव की आराधना का अक्षय फल मिलता है। सच्चे मन से की गई साधना से प्रसन्न होकर सूर्यदेव अपने भक्तों को सुख-समृद्धि और अच्छी सेहत का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य को नवग्रहों में प्रथम ग्रह और पिता के भाव कर्म का स्वामी माना गया है। जीवन से जुड़े तमाम दुखों और रोगों को दूर करने के साथ ही जिन्हें संतान नहीं होती उन्हें सूर्य साधना से लाभ मिलता है। पिता-पुत्र के संबंधों में विशेष लाभ के लिए सूर्य साधना करनी चाहिए।

सृष्टि के प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य के रथ में सात घोड़े होते हैं, जिन्हे शक्ति और स्फूर्ति का प्रतीक माना जाता है। भगवान सूर्य का रथ यह प्रेरणा देता है कि हमें अच्छे कार्य करते हुए सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिए, तभी जीवन में सफलता मिलती है।

सूर्य पूजा को समर्पित है रविवार का दिन
रविवार का दिन सूर्यदेव को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्य की आराधना करने पर शीघ्र ही उनकी कृपा प्राप्त होती है। रविवार के दिन भक्ति भाव से किए गए पूजन से प्रसन्न होकर सूर्यदेव अपने भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

साधना विधि
सनातन धर्म में सूर्य की उपासना शीघ्र ही फल देने वाली मानी गई है। सूर्यदेव की पूजा के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके पश्चात् उगते हुए सूर्य का दर्शन करते हुए उन्हें ॐ घृणि सूर्याय नमः कहते हुए जल अर्पित करें। सूर्य को दिए जाने वाले जल में लाल रोली, लाल फूल मिला लें। सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात लाल आसन में बैठकर पूर्व दिशा में मुख करके सूर्य के मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें।