विचार

भारत में 184 बिलियन डॉलर के Carbon सघन स्टील उत्पाद निवेश दांव पर

दुनिया में स्‍टील और लोहे के डीकार्बनाइजेशन सम्‍बन्‍धी प्रयासों पर नजर रखने वाली संस्‍था ग्‍लोबल एनर्जी मॉनिटर (Global Energy Monitor) ने अपनी नयी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि वैश्विक स्‍टील निर्माता इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (EAF) के मुकाबले ब्‍लास्‍ट फर्नेस (BF) आधारित क्षमता का अधिक निर्माण कर रहे हैं। यह तुलनात्‍मक रूप से अधिक स्‍वच्‍छ […]

दुनिया में स्‍टील और लोहे के डीकार्बनाइजेशन सम्‍बन्‍धी प्रयासों पर नजर रखने वाली संस्‍था ग्‍लोबल एनर्जी मॉनिटर (Global Energy Monitor) ने अपनी नयी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि वैश्विक स्‍टील निर्माता इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (EAF) के मुकाबले ब्‍लास्‍ट फर्नेस (BF) आधारित क्षमता का अधिक निर्माण कर रहे हैं। यह तुलनात्‍मक रूप से अधिक स्‍वच्‍छ और पर्यावरण के प्रति ज्‍यादा अनुकूल है।

इस रिपोर्ट में निष्‍कर्ष निकाला गया है कि वैश्विक स्‍टील और लोहा उद्योग वर्तमान में इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) की नेट जीरो पाथवे रिपोर्ट में बताये गये रास्‍ते पर आगे नहीं बढ़ रहा है। रिपोर्ट में इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस स्‍टील क्षमता की हिस्‍सेदारी को वर्ष 2030 तक 31 प्रतिशत से बढ़ाकर 37 फीसद और 2050 तक 53 प्रतिशत करने की जरूरत बतायी गयी है।

Also read: खो दिया है दुनिया ने Covid के बाद Green Recovery का मौका

ग्‍लोबल एनर्जी मॉनिटर के ग्‍लोबल स्‍टील प्‍लांट ट्रैकर के ताजा डेटा के मुताबिक अगर 345.3 मिलियन टन प्रति वर्ष की एमिशंस-हैवी ब्‍लास्‍ट फर्नेस बेसिक ऑक्‍सीजन फर्नेस (बीएफ-बीओएफ) की प्रस्‍तावित या निर्माणाधीन क्षमता को पूरी तरह विकसित कर लिया जाता है तो स्‍टील उद्योग की 518 बिलियन डॉलर की परिसम्‍पत्तियां फंस सकती हैं, क्‍योंकि दुनिया के विभिन्‍न देश कार्बन तटस्‍थता (नेट जीरो) सम्‍बन्‍धी अपने संकल्‍पों की पूर्ति के लिये काम कर रहे हैं।

सम्‍पत्तियों के फंस जाने का सबसे ज्‍यादा खतरा एशियाई देशों पर मंडरा रहा है। वैश्विक स्‍तर पर योजना के दौर से गुजर रही बेसिक ऑक्‍सीजन फर्नेस स्‍टील निर्माण क्षमता में चीन (237 बिलियन डॉलर तक की 158 एमटीपीए) और भारत (184 बिलियन डॉलर तक की 123 एमटीपीए) की कुल 80 फीसद हिस्‍सेदारी है। इसके अलावा ब्‍लास्‍ट फर्नेस बेसिक ऑक्‍सीजन फर्नेस स्‍टील निर्माण की 14 फीसद अतिरिक्‍त क्षमता की भी योजना है। इनमें इंडोनेशिया (24 एमटीपीए, 35 बिलियन डॉलर), वियतनाम (16 एमटीपीए, 23 बिलियन डॉलर) और मलेशिया (12 एमटीपीए, 17 बिलियन डॉलर) शामिल हैं।

Also read: Sri Lanka में गहराता संकट किस ओर कर रहा इशारा!

फिर भी ब्लास्ट फर्नेस-बेसिक ऑक्सीजन फर्नेस स्टीलमेकिंग को कम उत्सर्जन-गहन इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (ईएएफ) मार्ग के साथ बदलकर क्षेत्र को डीकार्बोनाइज करने की दिशा में प्रगति अभी स्थिर ही है।

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के वर्ष 2050 तक के लिये निर्धारित लक्ष्‍य के मुताबिक एलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस स्‍टीलमेकिंग क्षमता को वर्ष 2030 तक 31 प्रतिशत से बढ़ाकर 37 फीसद और वर्ष 2050 तक 53 प्रतिशत तक किया जाना है। इस लक्ष्‍य को हासिल करने के लिये 576 एमटीपीए इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस की अतिरिक्‍त क्षमता की आवश्‍यकता होगी। साथ ही साथ 419 एमटीपीए की बेसिक ऑक्‍सीजन फर्नेस क्षमता को या तो निरस्‍त करना होगा या फिर उसे चलन से बाहर करना होगा।

ग्‍लोबल एनर्जी मॉनिटर के ग्‍लोबल स्‍टील प्‍लांट ट्रैकर के ताजा डेटा के मुताबिक अगर 345.3 मिलियन टन प्रति वर्ष की एमिशंस-हैवी ब्‍लास्‍ट फर्नेस बेसिक ऑक्‍सीजन फर्नेस (बीएफ-बीओएफ) की प्रस्‍तावित या निर्माणाधीन क्षमता को पूरी तरह विकसित कर लिया जाता है तो स्‍टील उद्योग की 518 बिलियन डॉलर की परिसम्‍पत्तियां फंस सकती हैं, क्‍योंकि दुनिया के विभिन्‍न देश कार्बन तटस्‍थता (नेट जीरो) सम्‍बन्‍धी अपने संकल्‍पों की पूर्ति के लिये काम कर रहे हैं।

Also read: Climate Change: आगामी COP की कर रहा है ज़मीन तैयार बॉन का जलवायु सम्मेलन

इसके अलावा, रिपोर्ट में इस बात पर भी रोशनी डाली गयी है कि स्टील उत्पादन की आवश्‍यकता से अधिक क्षमता वाले देश कैसे उस क्षमता को निवृत्त कर सकते हैं या स्वच्छ उत्पादन प्रौद्योगिकियों में तब्‍दील कर सकते हैं। 48,060 टीटीपीए की उत्पादन क्षमता और 25% या 12,015 टीटीपीए की अतिरिक्‍त क्षमता वाला जर्मनी या तो इस अतिरिक्‍त क्षमता से निवृत्त हो सकता है या इस क्षमता को ईएएफ तकनीक में बदल सकता है।

रिपोर्ट में सुझाव दिये गये हैं : जरूरत से ज्‍यादा उत्‍पादन क्षमता स्‍टील निर्माताओं के सामने लाभदेयता सम्‍बन्‍धी गम्‍भीर चुनौ‍ती पेश करती है, क्‍योंकि उन्‍हें कम क्षमता उपयोगिता दरों पर काम करने, आपरेटिंग प्‍लांट्स में उत्‍पादन प्रौद्योगिकी में तब्‍दीली लाने सम्‍बन्‍धी रणनीतिक निर्णय लेने, प्रदूषणकारी तत्‍वों का ज्‍यादा उत्‍सर्जन करने वाले स्‍टील प्‍लांट्स को बंद करने और/या नियोजित क्षमता विस्‍तार को निरस्‍त करने के निर्णय लेने में संघर्ष करना पड़ता है। मगर यह स्थितियां उनके लिये वैश्विक इस्पात उद्योग को पर्यावरण के लिये बेहतर बनाने की ओर ले जाने के अवसर भी पैदा करती हैं।

रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि इस्पात निर्माण से जुड़े उत्सर्जन सम्‍बन्‍धी अनुमान धातुकर्म कोयला खनन के प्रभाव की जिम्‍मेदारी का आकलन करने में नाकाम हैं। स्टील उद्योग वर्तमान में प्रति वर्ष लगभग 2.6 गीगाटन प्रत्यक्ष कार्बन डाइ ऑक्‍साइड और बिजली क्षेत्र से 1.1 गीगाटन अप्रत्यक्ष कार्बन उत्सर्जन और स्टील ऑफ-गैस के दहन का उत्सर्जन करता है। अगर धातुकर्म कोयला खनन से होने वाले मीथेन उत्सर्जन को इस्‍पात निर्माण सम्‍बन्‍धी उत्सर्जन के वैश्विक आकलन में शामिल किया जाता है, तो स्टील उद्योग का कार्बन फुटप्रिंट वर्तमान में ज्ञात स्‍तर की तुलना में 27% (1 गीगाटन कार्बन सीओ2-ई20) जितना अधिक हो सकता है।

ग्‍लोबल स्‍टील प्‍लांट ट्रैकर की प्रोजेक्‍ट मैनेजर केटलिन स्‍वोलेक ने कहा “कम कार्बन उत्‍सर्जन वाला इस्‍पात निर्माण करना दुनिया के विभिन्‍न देशों के नेट जीरो सम्‍बन्‍धी लक्ष्‍यों की प्राप्ति की रणनीति का एक बड़ा हिस्‍सा है। हमें कोयला आ‍धारित ब्‍लास्‍ट फर्नेस बेसिक ऑक्‍सीजन उपकरणों में निवेश को रोकने और इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस स्‍टीलमेकिंग की तरफ रूपांतरण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ने की जरूरत है।”