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पर्यावरण पूरक गणेशोत्सव: दुष्प्रचार और धर्मशास्त्र!

गणेश मूर्ति पानी में विसर्जित करने से प्रदूषण होता है, ऐसा दुष्प्रचार कुछ तथाकथित आधुनिकतावादी कर रहे हैं । विविध प्रयोगों से सिद्ध हुआ है कि ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’ से बनाई हुई श्री गणेशमूर्तियां भी पानी में विसर्जित करने से प्रदूषण नहीं होता । विविध स्थानों पर स्वयं प्रशासन ही श्री गणेश मूर्तियों का विसर्जन […]

गणेश मूर्ति पानी में विसर्जित करने से प्रदूषण होता है, ऐसा दुष्प्रचार कुछ तथाकथित आधुनिकतावादी कर रहे हैं । विविध प्रयोगों से सिद्ध हुआ है कि ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’ से बनाई हुई श्री गणेशमूर्तियां भी पानी में विसर्जित करने से प्रदूषण नहीं होता । विविध स्थानों पर स्वयं प्रशासन ही श्री गणेश मूर्तियों का विसर्जन कृत्रिम हौद में करने का आवाहन करता है । बाद में यही मूर्तियां स्वयं प्रशासन ही नदी में विसर्जित करता है, ऐसी जानकारी सूचना के अधिकार अंतर्गत प्राप्त हुई है । अभी तो ‘अमोनियम बायकार्बोनेट’ नामक त्वचा हेतु घातक रसायन में श्री गणेशमूर्ति का विसर्जन नहीं, अपितु उसे पिघालने के लिए श्रद्धालुओं को बताया जाता है । यह सब करने की अपेक्षा श्रद्धालुओं से शाडू मिट्टी की श्री गणेशमूर्ति लेने का आवाहन क्यों नहीं किया जाता? शाडू मिट्टी की श्री गणेशमूर्ति का विसर्जन प्राकृतिक जलस्त्रोत में क्यों नहीं करने दिया जाता ? जनभावनाओं  का विचार कर धर्मशास्त्रानुसार विसर्जन करने की व्यवस्था पुलिस-प्रशासन द्वारा की जानी चाहिए । कोई भी प्रक्रिया किए बिना करोडों लीटर अतिदूषित अपशिष्ट पानी अनेक नदियों में नगरपालिकाएं छोडती हैं । प्रदूषण की चिंता का दिखावा करनेवाला प्रशासन और तथाकथित आधुनिकतावादी श्रद्धालुओं को ठग रहे हैं । गणेश भक्त ऐसे किसी भी बहकावे में न आएं । प्राकृतिक जलस्रोत के बहते पानी में ही श्री गणेशमूर्ति का विसर्जन करें और श्री गणेश की कृपा संपादित करें, ऐसा आवाहन हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्ट्र और छत्तीसगढ राज्य संगठक सुनील घनवट ने किया ।  हिन्दू जनजागृति समिति आयोजित ‘पर्यावरण पूरक गणेशोत्सव : दुष्प्रचार और धर्मशास्त्र !’ इस विशेष संवाद में वे बोल रहे थे ।

सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस ने कहा कि, ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’ की गणेशमूर्ति धर्मशास्त्र सम्मत नहीं है । साथ ही उसमें श्री गणेश के पवित्रक आकृष्ट नहीं होते । इसलिए घर में ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’ की गणेशमूर्ति न लाएं । पंचगव्य, गोबर इत्यादि घटकों से भी गणेशमूर्ति न बनाएं । पार्थिव सिद्धिविनायक व्रत के अनुसार शाडू मिट्टी अथवा चिकनी मिट्टी की गणेश मूर्ति लाएं । मिट्टी 'इकोफ्रेंडली' होती ही है, यह ध्यान में रखना चाहिए । कोरोना के काल में शाडू की मिट्टी उपलब्ध न होने पर, घर के आंगन की चिकनी मिट्टी से 6 – 7 इंच की गणेश मूर्ति भी बना सकते हैं । मिट्टी भी उपलब्ध न हो तो प्राणप्रतिष्ठा विधि किए बिना श्री गणेश के चित्र का षोडशोपचार पूजन कर सकते हैं । वर्तमान में गमले में 'बीज' रखकर श्री गणेशमूर्ति का विसर्जन करने का प्रचार पर्यावरणवादियों द्वारा किया जाता है । वृक्षारोपण करने हेतु वर्ष के अन्य 365 दिन हैं, तब केवल गणेशोत्सव में ही बीज के रूप में श्री गणेश की पूजा क्यों करें, ऐसा पर्यावरणवादियों से हमारा प्रश्‍न है?' 

हिन्दू विधिज्ञ परिषद के संस्थापक सदस्य अधिवक्ता पू. सुरेश कुलकर्णीजी ने कहा, 'शोध द्वारा सिद्ध हुआ है कि कागजी लुगदी की मूर्ति अत्यधिक प्रदूषणकारी होती है । इसलिए हिन्दू विधिज्ञ परिषद की ओर से हमने 'राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण' में याचिका प्रविष्ट की । इस याचिका के कारण कागजी लुगदी से मूर्ति बनाने के शासन के अध्यादेश को वर्ष 2016 में स्थगित किया गया है । तब भी आज 'इकोफ्रेंडली' के नाम पर कागजी लुगदी से बनी मूर्तियों का सार्वजनिक रूप से प्रचार किया जा रहा है । इसके विरोध में अपराध प्रविष्ट करने हेतु पहल करनी चाहिए।'

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