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पराक्रम दिवसः नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में जानें कुछ रोचक तथ्य

नई दिल्लीः नेताजी के नाम से मशहूर सुभाष चंद्र बोस की आज 125 वीं जयंती है। दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी की अदम्य भावना और राष्ट्र के प्रति निस्वार्थ सेवा के लिए सम्मानित करने के लिए, केंद्र ने नागरिकों, विशेषकर युवाओं, को प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल उनकी ‘जयंती’ को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में […]

नई दिल्लीः नेताजी के नाम से मशहूर सुभाष चंद्र बोस की आज 125 वीं जयंती है। दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी की अदम्य भावना और राष्ट्र के प्रति निस्वार्थ सेवा के लिए सम्मानित करने के लिए, केंद्र ने नागरिकों, विशेषकर युवाओं, को प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल उनकी ‘जयंती’ को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया है। इस दिवस का उद्देश्य देश के लोगों में देशभक्ति की भावना का संचार करना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में, नेताजी की थीम पर आधारित ‘अमरा नूतन जौबनेरी दूत’ नामक एक सांस्कृतिक कार्यक्रम पश्चिम बंगाल के कोलकाता में विक्टोरिया मेमोरियल में ‘पराक्रम दिवस’ समारोह के उद्घाटन समारोह के दौरान आयोजित किया जाना है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा, बंगाल डिविजन के कटक में हुआ था। बोस के पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियां और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र उनकी 9वीं संतान और 5वें बेटे थे। नेताजी बड़े होकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बने। नीचे उनके बारे में रोचक तथ्य दिए गए हैं।

नेताजी के नारे
नेताजी का दिया गया नारा ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’, ‘जय हिन्द’ जैसे नारों ने आजादी की लड़ाई को नई ऊर्जा देने का काम किया था। नेताजी द्वारा ‘दिल्ली चलो नारा भी काफी प्रसिद्ध है। इसके अलावा, प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी ने रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित ‘जन गण मन ’को स्वतंत्र भारत के लिए उनके पसंदीदा राष्ट्रगान के रूप में चुना।

नेताजी – एक उज्ज्वल छात्र 
नेताजी की प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। इसके बाद उनकी शिक्षा कोलकाता के प्रेजीडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई। सन् 1920 में भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) परीक्षा में उन्होंने चैथा स्थान हासिल किया। लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने जॉब छोड़ दी, क्योंकि उन्हें विदेशी सरकार के अधीन काम करना पसंद नहीं था। सिविल सर्विस छोड़ने के बाद वह देश के अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए। 

अपनी सेक्रेटरी से की शादी
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने साल 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की। दोनों की एक बेटी अनीता हुई और वर्तमान में वो जर्मनी में अपने परिवार के साथ रहती हैं।

गांधीजी के समकालीन के रूप में नेताजी 
बंगाल का टाइगर जो ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता के लिए दहाड़ता था, राष्ट्रपिता का समकालीन था। बोस, अपने क्रांतिकारी दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अलग-अलग समय में दोनों एक सहयोगी और महात्मा गांधी के विरोधी थे।

नेताजी का समाचार पत्र और पुस्तक
नेताजी फारवर्ड नाम के अखबार के संपादक के रूप में काम करते थे, जो उनके गुरु चित्तरंजन दास, बंगाल के एक शक्तिशाली राजनेता थे। बाद में, नेताजी ने अपना स्वयं का समाचार पत्र, स्वराज शुरू किया, और एक पुस्तक – द इंडियन स्ट्रगल भी प्रकाशित की।

ब्रिटिश सरकार और बोस 
भारत को आजाद कराने के लिए उग्रवादी दृष्टिकोण के लिए जाने जाने वाले प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी को अनगिनत बार गिरफ्तार किया गया, रिहा किया गया। क्योंकि ब्रिटिश सरकार को उन पर गुप्त क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने का संदेह था।

नेताजी की आजाद हिंद फौज
अंग्रेजों से भारत को आजादी दिलाने के लिए नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को ‘आजाद हिंद सरकार’ की स्थापना करते हुए ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन किया। नेताजी ने स्वतंत्र भारत के लिए लड़ाई लड़ी। 74 साल पहले उन्होंने अपनी फौज के साथ मिलकर अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिये थे। यहां उन्होंने नारा दिया था ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।’

कई बार गए जेल
1921 से 1941 के दौरान वो पूर्ण स्वराज के लिए कई बार जेल भी गए थे। उनका मानना था कि अहिंसा के जरिए स्वतंत्रता नहीं पाई जा सकती। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने सोवियत संघ, नाजी जर्मनी, जापान जैसे देशों की यात्रा की और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सहयोग मांगा। 

नेताजी का गायब होना
नेताजी की मृत्यु सबसे बड़े भारतीय रहस्यों में से एक है। कहा जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को ताइपे में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी। 2017 में आरटीआई (सूचना का अधिकार) के जवाब में केंद्र सरकार द्वारा इसकी पुष्टि की गई थी। घटना को लेकर तीन जांच आयोग बैठे, जिसमें से दो जांच आयोगों ने दावा किया कि दुर्घटना के बाद नेताजी की मृत्यु हो गई थी। जबकि न्यायमूर्ति एमके मुखर्जी की अध्यक्षता वाले तीसरे जांच आयोग का दावा था कि घटना के बाद नेताजी जीवित थे। हालांकि, विभिन्न समूहों ने उनकी मौत के दावे का खंडन किया। उनके लापता होने के बाद से, कई षड्यंत्र सिद्धांत सामने आए हैं।

मोदी सरकार ने किए गोपनीय दस्तावेज सार्वजनिक
2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी सौ गोपनीय फाइलों का डिजिटल संस्करण सार्वजनिक किया, ये दिल्ली स्थित राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद हैं।

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