विश्लेषक तरह तरह के कयास लगा रहे हैं। कोई व्यवसायिक तनाव को तो कई जिमिंग को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। कारण जो भी हों, ऐसे अनेक उदाहरण समय समय पर हमारे समक्ष आते हैं। जीवन की क्षणभंगुरता का अहसास कराते हैं। कुछ देर के श्मशानी वैराग्य के बाद हम सामान्य होकर उसी गति से दौड़ने लगते हैं।
हम सीखते क्या हैं? और उस सीखे हुए को स्वयं के जीवन पर कितना लागू कर लेते हैं, महत्वपूर्ण यह है!
द्रुतगामी रेल जब दौड़ती है, तब कई छोटे स्टेशन छोड़ देती है।
व्यक्ति अपने बिजनेस या प्रोफेशनल करियर में जब तेज गति से गुजर रहा होता है, तब जीवन के सफर में भी, ऐसे ही कई आयाम छूट जाते हैं। हर किसी के जीवन में ऐसे एक या अनेक कालखंड आते हैं।
सवाल, तनाव या जिम का नहीं है। जीवन के (शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक) सभी डाइमेंशन को दुरुस्त रखने में मानव किस हद तक अपना सर्वस्व दे रहा है, प्रश्न यह है। हमारी सजगता कितनी है स्वयं के प्रति? हमारा कितना आकर्षण उन गैरज़रूरी विषयों में है, जो धीरे धीरे भीतरघात कर रहे होते हैं, लेकिन हम बेखबर रहते हैं!
कोई भी आयाम, सबसे पहले शरीर को प्रभावित करता है। व्यक्ति की दृष्टि बस वहीं तक रहती है। फिर, वह शरीर को सही करने के लिए जोर जबरदस्ती करता है। यह आरोपण (चाहे वह डाइटिंग के रूप में हो अथवा कसरत और जिमिंग के रूप में) कोई नई तकलीफ उत्पन्न कर देता है।
जीवन को समग्रता से भी जीना और सहजता से भी, यह सिखाने वाला कोई नहीं। शरीर को कैसे ठीक करना है, इसके लिए अनेक तरह के डॉक्टर और ज्ञानी मिल जायेंगे, लेकिन मानसिक और भाव दशा को कैसे दुरस्त रखना है, इस ज्ञान को हासिल करने में न तो हमारी रुचि है और न ही समय!!
आज, पैसा, रुतबा और नाम को ही प्राथमिकता बना दिया गया। इसमें सफल हुए व्यक्ति के जीवन को हम सफलता की कसौटी मानने लग गए। जबकि, यह जीवन के महत्वपूर्ण आयाम में विशेष हिस्सेदारी नहीं रखते। पैसा जरूरी है, लेकिन जिस तरह यह बुद्धि और मन पर हावी होता जा रहा है, वह कितना सही है?
राजू श्रीवास्तव और राकेश झुनझुनवाला जीवंत व्यक्तित्व के धनी थे। तनाव लेने वाले व्यक्ति नहीं रहे होंगे वे। लेकिन कहीं न कहीं कुछ ऐसा छूटा कि जीवन असमय बेपटरी हो गया।
हमारा जीवन ‘समय’ मांगता है। इसे ठहराव और स्पर्श की प्रबल आवश्यकता होती है। उससे यह रिचार्ज होता है। इस तकनीक को सीख पाना आज की परम प्राथमिकता होनी चाहिए। बच्चों को इस ज्ञान से साक्षात्कार नहीं कराया गया तो तकलीफ वे भी पाएंगे और उनके अभिभावक भी। पढ़ाई और प्रोफेशन के साथ साथ यह सजगता भी उतने ही महत्व की है। हमारा जीवन इतना सस्ता नहीं कि उसे यूं ही असमय खो दें!!
स्वयं के प्रति सम्पूर्ण जागृति ही बचाव की भूमिका निभा सकती है। जो जितनी जल्दी समझे, बेहतर है।