Badlapur sexual harassment case: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को बदलापुर स्कूल में नाबालिग लड़कियों का यौन उत्पीड़न केस में स्कूल के अध्यक्ष और सचिव को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है।
न्यायमूर्ति आर एन लड्ढा की एकल पीठ ने कहा कि दोनों आरोपियों को कथित घटना की जानकारी थी, लेकिन उन्होंने पुलिस या स्थानीय प्राधिकारी को इसकी सूचना नहीं दी।
न्यायमूर्ति लड्ढा ने आगे कहा कि अपराध गंभीर है और अदालत को नाबालिग पीड़ितों की दुर्दशा पर विचार करना होगा।
अदालत ने कहा, “पीड़ित नाबालिग हैं। उन्होंने जो आघात सहा है, उसका उनके किशोरावस्था पर गहरा असर हो सकता है, जिससे उन पर मनोवैज्ञानिक निशान रह सकते हैं।”
अदालत ने कहा कि यह निर्विवाद है कि आवेदक स्कूल के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार व्यक्ति हैं।
उच्च न्यायालय ने कहा, “प्रथम दृष्टया ऐसी सामग्री है जो दर्शाती है कि पीड़ितों के माता-पिता ने कक्षा शिक्षक और अन्य कर्मचारियों के समक्ष अपनी शिकायतें व्यक्त की थीं। आवेदक 16 अगस्त से पहले घटना के बारे में जानते थे। जानकारी होने के बावजूद, उन्होंने घटना की सूचना पुलिस को नहीं दी।”
पीठ ने कहा कि मामला दर्ज करने में देरी “मुख्य रूप से आवेदकों की लापरवाही के कारण हुई, जिसके कारण केवल वे ही जानते हैं।”
इसमें कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति को अपराध के बारे में पता है या उसे इसके बारे में अवगत कराया गया है, तो यह उसकी कानूनी बाध्यता है कि वह अपराध की सूचना दे।
न्यायालय ने आगे कहा कि घटना के दिन से स्कूल परिसर की सीसीटीवी फुटेज गायब है।
उच्च न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के प्रावधानों और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णयों का भी हवाला दिया, जो किसी व्यक्ति पर यह कर्तव्य और दायित्व डालते हैं कि वह किसी भी यौन उत्पीड़न अपराध के बारे में अवगत होने पर तुरंत पुलिस को सूचना दे।
हाईकोर्ट ने कहा, “यह कर्तव्य महज एक प्रक्रिया नहीं है जिसे अनदेखा किया जा सकता है। ऐसे अपराधों की रिपोर्ट करने में विफलता या परिणाम गंभीर हैं।”
इसने कहा कि अदालतों को ऐसे मामलों से निपटने में सावधानी बरतनी चाहिए जहां स्कूल या शैक्षणिक संस्थान नाबालिगों के खिलाफ यौन अपराधों की रिपोर्ट करने में विफल रहे हैं।
आरोपियों ने अग्रिम जमानत याचिका में क्या कहा?
सत्र न्यायालय द्वारा उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद, बदलापुर स्कूल के अध्यक्ष और सचिव ने हाईकोर्ट का रुख किया।
उन्होंने दावा किया कि उन्हें कथित अपराध के बारे में जानकारी नहीं थी और इसलिए उन्हें इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
दोनों ने आगे दावा किया कि एफआईआर दर्ज करने में अस्पष्ट देरी हुई थी।
उन्होंने इस बात पर भी संदेह जताया कि क्या यह घटना हुई थी, उन्होंने दावा किया कि दोनों पीड़ित 15 अगस्त को स्कूल में ध्वजारोहण समारोह में शामिल हुए थे और तब कोई शिकायत नहीं की गई थी।
घटना की सूचना तुरंत पुलिस को न देने और लापरवाही बरतने के आरोप में दोनों आरोपियों पर पोक्सो अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है।
क्या हुआ बदलापुर में?
पुलिस के अनुसार, अगस्त में स्कूल के शौचालय में चार और पांच साल की दो लड़कियों के साथ कथित तौर पर एक पुरुष परिचारक ने यौन शोषण किया था।
बदलापुर पुलिस मामले की जांच कर रही थी। लेकिन पुलिस जांच में गंभीर खामियों को लेकर लोगों में आक्रोश बढ़ने के बाद, महाराष्ट्र सरकार ने मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया।
बाद में पुरुष परिचारक अक्षय शिंदे को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन 23 सितंबर को पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में वह मारा गया।
पुलिस के अनुसार, स्कूल के अध्यक्ष और सचिव को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है।