धर्म-कर्म

जानिये! कौन से 14 स्थानों पर प्रभु श्रीराम ने गुजारे अपने वनवास के 14 वर्ष

यह बात तो हम सभी जानते हैं कि भगवान श्री राम को 25 वर्ष की आयु में वनवास जाना पड़ा। लेकिन इन 14 सालों में वह कहां-कहां और किन-किन लोगों से मिले? इस बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। आज हम इसी व‍िषय पर जानकारी शेयर कर रहे हैं, आइए जानते हैं… सबसे […]

यह बात तो हम सभी जानते हैं कि भगवान श्री राम को 25 वर्ष की आयु में वनवास जाना पड़ा। लेकिन इन 14 सालों में वह कहां-कहां और किन-किन लोगों से मिले? इस बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। आज हम इसी व‍िषय पर जानकारी शेयर कर रहे हैं, आइए जानते हैं…

सबसे पहले तमसा के तट पर
धर्मग्रंथों के अनुसार श्री राम जी वनवास काल के दौरान सर्वप्रथमा तमसा नदी के तट पर पहुंचे। यह अयोध्‍या से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

रृंगवेरपुर में राम
इसके बाद भगवान गोमती नदी को पार करके श्रृंगवेरपुर पहुंचे जो कि प्रयागराज से तकरीबन 20 से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। श्रृंगवेरपुर गुह्यराज निषादराजजी का राज्‍य था। इसी जगह उन्‍होंने केवट से गंगा पार कराने को कहा था। यहां पर भगवान राम एक दिन ठहरे थे। लंका से लौटते समय यहां रामजी ने केवट से फिर भेंट किया था। यहां केवट ने देवी सीता समेत माता गंगा की पूजा की थी।
 
चित्रकूट का घाट
संगम पार करने के बाद श्रीराम यमुना नदी पार करके चित्रकूट पहुंचे। यह वही स्‍थान है जहां पर श्री भरत जी अपने गुरु और सेना के साथ बड़े भाई राम को वापस अयोध्या ले जाने आए थे। यहीं रामजी ने अपनी चरण पादुका भरत को दी और उन्‍होंने उसे ही रखकर राज्‍य का कार्यभार संभाला।

ऋषि अत्रि का आश्रम
चित्रकूट के समीप सतना में ऋषि अत्रि का आश्रम था। यहां पर भी श्रीराम ने कुछ समय व्‍यतीत किया। यहीं पर ऋषि अत्रि की पत्‍नी अनुसूइया के तपबल से भागीरथी गंगा की एक पवित्र धारा निकली। यह धारा मंदाकिनी के नाम से प्रसिद्ध है।

दंडकारण्‍य में वनवास
श्रीराम ने दंडकारण्‍य में वनवास के 10 वर्ष व्‍यतीत किये थे। बता दें कि यह जंगल क्षेत्र था जिसे श्रीराम ने अपना आश्रय स्‍थल बनाया था।

शहडोल में राम
इसके बाद वह शहडोल यानि कि अमरकंटक गए। इसी स्‍थान पर एक झरना है। वह झरना जिस कुंड में गिरता है उसे ‘सीताकुंड’ कहते हैं। यहीं पर वशिष्‍ठ गुफा भी है।

अगस्‍त्‍य मुनि के आश्रम में राम
श्रीराम दंडकारण्‍य के बाद पंचवटी यानि कि नासिक पहुंचे। वहां उन्‍होंने ऋषि अगस्‍त्‍य के आश्रम कुछ समय बिताया। इसी दौरान ऋषि ने उन्‍हें अग्निशाला में बनाए गए शस्‍त्र भेंट किए। इस स्‍थान के साथ कई सारी कथाएं जुड़ी हैं। मान्‍यता है कि पंचवटी यानी कि पांच वृक्षों (पीपल, बरगद, आंवला, बेल और अशोक) को जानकी, राम और लक्ष्‍मण ने अपने हाथों से रोपा था। इसी जगह पर लक्ष्‍मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी और राम-लक्ष्‍मण का खर-दूषण के साथ युद्ध हुआ था।

सर्वतीर्थ में राम
नासिक से 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ‘सर्वतीर्थ।’ इस स्‍थान पर ही माता सीता का अपहरण हुआ था। इसी जगह पर रावण-जटायु का युद्ध हुआ और जटायु की मृत्‍यु हो गई। धर्मग्रंथों के मुताबिक सीता जी का इस स्‍थान पर वनवास काल के 13वें वर्ष में हरण हुआ था।

माता शबरी का आश्रम
सर्वतीर्थ के बाद सीता की खोज में श्रीराम अनुज लक्ष्‍मण के साथ ऋष्‍यमूक पर्वत पर पहुंचे। इसके बाद वह माता शबरी के आश्रम गए जो कि वर्तमान में केरल में है। यह आश्रम पंपा नदी के समीप ही स्थित है।

ऋष्‍यमूक पर्वत और श्रीराम
धर्मग्रंथों के अनुसार ऋष्‍यमूक पर्वत वानरों की राजधानी किष्‍किंधा के निकट था। सीता की खोज में निकले श्रीराम और लक्ष्‍मण की यहीं पर हनुमान और सुग्रीव से भेंट हुई थी।

रामेश्‍वरम् में मर्यादा पुरुषोत्‍तम
सीता की खोज में मर्यादा पुरुषोत्‍तम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले रामेश्‍वरम् में ही भोलेनाथ की पूजा की। यहां पर उन्‍होंने शिवलिंग स्‍थापित किया।

धनुषकोडी और राम
वाल्‍मीकि रामायण में उल्‍लेख मिलता है कि प्रभु श्रीराम ने रामेश्‍वरम् के आगे धनुषकोडी नामक स्‍थान की खोज की। यह समुद्र में वह स्‍थान था जहां से सुगमतापूर्वक श्रीलंका पहुंचा जा सकता था।

नुवारा एलिया पर्वत श्रृंखला
धर्मग्रंथों के अनुसार नुवारा एलिया पहाड़‍ियों से तकरीबन 90 किलोमीटर की दूरी पर बांद्रवेला की ओर ही रावण का महल था। यह स्‍थान मध्‍य लंका की ऊंची पहाड़ियों के मध्‍य था।

राम-रावण का युद्ध
भगवान राम और लंकापति रावण का युद्ध 13 दिनों तक चला। इसके बाद रावण वध से युद्ध की समाप्ति हुई और लंका से अयोध्‍या वापसी में श्रीराम पुन: रामेश्‍वरम् पहुंचे इसके बाद नासिक से भारद्वाज मुनि के आश्रम प्रयाग और फिर अयोध्‍या वापस पहुंचे।

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