हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के सोलन (Solan) स्थित जटोली शिव मंदिर ((Jatoli Shiva Mandir) भगवान शिव (Lord Shiva) के सबसे ऊँचे मंदिरों में से एक है। इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि भगवान शिव ने इस स्थान पर अल्प विश्राम किया था। स्थानीय लोग मानते हैं कि भगवान शिव अपनी यात्रा के दौरान इस स्थान पर आए थे और यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता से मोहित होकर कुछ दिनों तक रुके और तपस्या भी की थी।
इस स्थान को महत्व
इस स्थान को महत्व दिलाने का श्रेय स्वामी कृष्णानन्द परमहंस को जाता है। 1950 के दशक में स्वामी कृष्णानन्द इस स्थान पर आए थे। कहा जाता है कि जटोली के लोग तब पानी की भीषण कमी से जूझ रहे थे। लोगों के इस संकट को दूर करने के लिए स्वामी कृष्णानन्द ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और अपने त्रिशूल से प्रहार कर जमीन से पानी बाहर निकाला। तब से जटोली के लोगों को कभी पानी की कमी का सामना नहीं करना पड़ा।
इस मंदिर के निर्माण की नींव
इसके बाद स्वामी कृष्णानन्द ने ही जटोली के इस मंदिर के निर्माण की नींव रखी। 1974 में इस मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। हालाँकि वर्ष 1983 में स्वामी कृष्णानन्द ने समाधि ले ली, लेकिन मंदिर का निर्माण नहीं रुका। देश-दुनिया के कोने-कोने में बसे हिंदुओं ने अपने आराध्य के इस अनूठे मंदिर के निर्माण के लिए अपना सहयोग दिया। मंदिर के निर्माण में कुल मिलाकर 39 वर्ष लगे और करोड़ों रुपए खर्च हुए।
रहस्यमय गुफा
मंदिर के कोने में ही स्वामी कृष्णानन्द की एक रहस्यमय गुफा है। इस गुफा में भी एक शिवलिंग स्थापित है। जिसपर निरंतर सफेद रंग का पानी गिरता रहता है। चौंकाने वाली बात यह है कि ये पानी गुफा के अंदर ही छत से चार थन रूपी पत्थरों से गिरता रहता है। इसमें से दो थन अब टूट गए हैं लेकिन बाकी बचे दो से नीचे बने शिवलिंग पर लगातार पानी गिरता रहता है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि ये शिवलिंग सदियों से यहां इसी हालत में हैं और इनपर खुद बखूद पानी गिरता रहता हैं।
लोगों को गहरी आस्था
माना जाता है कि कभी भगवान शिव ने इस गुफा के भीतर तपस्या की थी और फिर बाद में यहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए। इस मंदिर के प्रति लोगों को गहरी आस्था हैं। हजारों लोग यहां भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। स्थानीय लोगों के मुताबिक यहां श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है।
मंदिर की विशेषता
मंदिर की ऊँचाई लगभग 111 फुट है। हाल ही में इस मंदिर में 11 फुट का एक स्वर्ण कलश चढ़ाया गया जिसके कारण मंदिर की कुल ऊँचाई 122 फुट हो गई है।
मंदिर के चारों तरफ भगवान शिव और माता पार्वती समेत विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं। मंदिर के गर्भगृह में स्फटिक मणि से निर्मित शिवलिंग स्थापित किया गया है। मंदिर की विशेषता है गुफा के पत्थर। गुफा में लगे इन पत्थरों को छूने या थपथपाने से डमरू की आवाज आती है। दुर्गम पहाड़ियों के बीच इस गुफा को लोग शिवढांक के नाम से जाना जाता है। यहां तक पहुंचने के लिए दुर्गम रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है।
पौराणिक महत्व
भले ही इस मंदिर का निर्माण आज से कुछ 45-50 साल पहले ही हुआ हो, लेकिन इस स्थान का महत्व पौराणिक है और स्वामी कृष्णानन्द परमहंस ने इसी महत्व को देखते हुए भगवान शिव की तपस्या के लिए इस स्थान को चुना।
यहां पहुंचने के रास्ते
हिमाचल प्रदेश के प्रमुख शहरों में से एक सोलन का करीबी हवाईअड्डा शिमला में है, जो यहाँ से लगभग 45 किमी की दूरी पर है। हिमाचल प्रदेश सरकार निजी सार्वजनिक भागीदारी (PPP) के तहत सोलन में ही 1,000 करोड़ की लागत से राज्य का पहला अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा बनाने जा रही है।
हालाँकि, सोलन का नजदीकी प्रमुख हवाईअड्डा चंडीगढ़ है। रेलमार्ग से सोलन तक पहुँचने के साधन फिलहाल सीमित हैं। सोलन विश्व प्रसिद्ध कालका-शिमला नैरो गेज लाइन पर स्थित है। कालका जंक्शन के माध्यम से सोलन, दिल्ली, देहरादून, कोलकाता और अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है।
राष्ट्रीय राजमार्ग 22 प्रमुख सड़क मार्ग है, जो सोलन से होकर गुजरता है। यह एक डिफेंस रोड है जो दिल्ली, अंबाला, चंडीगढ़ और देहरादून को चीन की सीमा से जोड़ती है। शिमला से सोलन की सड़क मार्ग से दूरी लगभग 48 किमी और चंडीगढ़ से लगभग 68 किमी है।