धर्म-कर्म

क्यों भगवान शिव को लेना पड़ा अपना सबसे शक्तिशाली अवतार ‘शरभ’?

शरभ अवतार ब्रह्मांड की रक्षा के लिए भगवान शिव (Bhagwan Shiv) द्वारा लिया गया सबसे शक्तिशाली अवतार था। माना जाता हैं की शरभ अवतार का पूजा-पाठ करने से भाग्यशाली होने, नुकसान से बचाव सहित विभिन्न विवादों में भी जीत मिलती है।भगवान शिव के इस अवतार का उद्देश्य भगवान विष्णु के भयंकर और उग्र नरसिंह अवतार को काबू करना था।

शरभ अवतार ब्रह्मांड की रक्षा के लिए भगवान शिव (Bhagwan Shiv) द्वारा लिया गया सबसे शक्तिशाली अवतार था। माना जाता हैं की शरभ अवतार का पूजा-पाठ करने से भाग्यशाली होने, नुकसान से बचाव सहित विभिन्न विवादों में भी जीत मिलती है।भगवान शिव के इस अवतार का उद्देश्य भगवान विष्णु के भयंकर और उग्र नरसिंह अवतार को काबू करना था।

अथर्व वेद के उपनिषदों के अनुसार, अपने प्रिय भक्त प्रहलाद को बचाने और हिरणकश्यप का वध करने के बाद भगवान नरसिंह नियंत्रण से बाहर होकर विनाश करना शुरू कर देते हैं। उन्होंने महज गर्जना करके ही ब्रह्मांड में एक भयानक स्थिति पैदा कर दी। इसे सभी देवता भयभीत हो परमपिता ब्रह्मा की शरण में गए। ब्रह्मा उन्हें लेकर भगवान विष्णु के पास गए और उनसे प्रार्थना की कि वे अपने अवतार के क्रोध शांत कर लें भगवान विष्णु वापस उसे अपने अंदर समाने का प्रयास करते, लेकिन नरसिंह काफी बेकाबू हो चुके थे।

तब भगवान विष्णु ने सभी को महादेव के पास चलने की सलाह दी। उन्होंने कहा चूंकि भगवान शिव उनके आराध्य हैं, इसलिए सिर्फ वही नरसिंह के क्रोध को शांत कर सकते हैं। कोई उपाय न देख कर सभी भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान विष्णु और सभी देवताओं ने भगवान शिव से नरसिंह को रोकने का अनुरोध किया। भगवान विष्णु ने उनसे आग्रह किया कि वे नरसिंह अवतार को अपने नियंत्रण में लाये, जिससे वे उसे वापस से अपने अंदर समा सके ।

भगवान विष्णु और देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने पहले अपने एक अवतार वीरभद्र को भेजा लेकिन वे नरसिंह से परस्त हो गए। हार के बाद वीरभद्र ने महादेव से कहा कि नरसिंह को हराने के लिए, उन्हें ही स्वयं ऐसा रूप लेना होगा जो न तो भगवान हो, न ही असुर या मानव, न पक्षी और न ही जानवर। इसके बाद ही भगवान शिव से शरभ अवतार का उदय हुआ।जिनके आठ हाथ थे और जो सिंह, गरुड़ और हाथी का मिला-जुला स्वरुप थे। जिसके पास सिंह और हाथी से ज्यादा ताक़त था और एक छलांग में घाटी को पार करने की क्षमता रखते थे। भगवान शिव का यह अवतार चपलता, शक्ति और बुद्धि का प्रतीक है।

इसके बाद भगवान शिव के शरभ अवतार और भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के बीच लगभग 18 दिनों तक युद्ध हुआ। नरसिंह को शरभ अपने पंजों में से खींच कर पाताल में ले गए और काफी देर तक नरसिंह को अपने पंजों में जकड़े रखा। अपनी सारी शक्तियों और प्रयासों के बाद भी भगवान नरसिंह उनकी पकड़ से छूटने में सफल नहीं हो पाए।

शरभ के हमलों से घायल होकर नरसिंह को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने शरभ से प्रार्थना की और सुंदर उपदेशों के साथ माफी मांगी, जो बाद में विजयी भगवान का अष्टस्रोत बन गया।

भगवान शिव ने भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के क्रूर स्वभाव के ठीक होने की बात बताई, इस कारण उन्हें चोट नहीं पहुंचाई। तत्पश्चात नरसिंह ने अपने शरीर को छोड़ने का फैसला किया लेकिन पहले उन्होंने भगवान शिव को उनके मूल रूप में प्रकट होने का आग्रह किया।नरसिंह के इच्छा के अनुसार, भगवान शिव वहां प्रकट हुए और उन्हें बताते हैं कि उन्होंने भगवान विष्णु और अन्य देवताओं के अनुरोध शरभ का रूप धारण किया था। उसके बाद नरसिंह भगवान विष्णु में और शरभ भगवान शिव समा गए।

यह कथा क्रोध पर विजय पाने की भी है, जिसमें यह सीख मिलती है कि यदि हम किसी बलशाली से युद्ध करने जा रहे हैं तो स्वयं को परिपक्व कर लें। तभी हमारी विजय सुनिश्चित होगी। शरभ अवतार के रूप में विद्यमान मृग फुर्ती तथा शरभ पक्षी बुद्धि तथा शक्ति का परिचायक है।

आज भी दक्षिण भारत में भगवान शिव के शरभ अवतार की पूजा की जाती है। शिव के इस अवतार से संबंधित श्रीलंका में मुनेश्वरम टेम्पल, तमिलनाडु में ऐराटेसरा मंदिर और त्रिभुवनम मंदिर हैं। कर्नाटक के राज्य और मैसूर विश्वविद्यालय के प्रतीक चिन्ह में भी शरभ अवतार है।