जलवायु परिवर्तन (Climate Change) एक ऐसी हक़ीक़त है जिससे अब हम सब धीरे धीरे वाकिफ हो रहे हैं। अब अपने जीवन पर हम उसके असर भी देख रहे हैं। कभी भीषण गर्मी, तो कभी जानलेवा बरसात और बाढ़, तो कभी हिमाचल प्रदेश जैसी त्रासदी। सिक्किम में हुई बादल फटने की घटना को भी वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के एक असर के रूप में देख रहे हैं। इस सब में, क्या आपने कभी जलवायु परिवर्तन को किसी दिव्याँग बच्चे की नज़र से देखा? यह एक ऐसा नज़रिया और विषय है जिस पर हमारा ध्यान अब जाना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके प्रभाव न केवल आंखें खोलने वाले हैं बल्कि काफी चिंताजनक भी हैं।
सोचने बैठिए तो पता चलता है यह विशेष जरूरतों वाले बच्चे जलवायु परिवर्तन के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों के प्रति सबसे ज़्यादा संवेदनशील होते हैं। साथ ही, आप सोचेंगे तो आपको समझ आएगा कि जलवायु परिवर्तन सिर्फ मौसम को ही नहीं बदलता; यह इन दिव्याँगजनों के मौलिक मानवाधिकारों तक को प्रभावित कर सकता है। जब जलवायु आपदाएं आती हैं, तब दिव्याँगजनों और विशेष रूप से यह दिव्याँग बच्चे अक्सर महत्वपूर्ण चिकित्सा उपचार और स्वास्थ्य सेवाओं तक अपनी पहुंच खो देते हैं। साथ ही, जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती आवृत्ति के साथ तीव्र चरम मौसम की घटनाओं के चलते विस्थापन का खतरा सभी के लिए बढ़ जाता है। लेकिन इस विशेष समुदाय के लिए अतिरिक्त चुनौतियाँ के साथ होता है।
आगे बात करें तो समझ आता है कि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती है, और इससे निपटने के लिए तुरंत और व्यापक कदम उठाने की आवश्यकता है। यह सच है कि जलवायु परिवर्तन का सभी पर असर पड़ता है, लेकिन तथाकथित सामान्य लोगों की अपेक्षा दिव्यांग बच्चे इसके प्रभावों से अधिक विचलित होते हैं।
ऐसे में इन दिव्यांग बच्चों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने और बदलती हुई जलवायु में उनके अनुकूलन को सुनिश्चित करने के लिए समावेशी जलवायु कार्रवाई जरूरी है।
दिव्यांग बच्चों को अपने दैनिक जीवन में ही कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली भीषण मौसमी घटनाओं में और भी गंभीर हो सकती हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है उनकी गतिशीलता की सीमा, किसी गंभीर प्राकृतिक घटना से अपने आप को बचाने की सीमित क्षमता के चलते अधिक संवेदनशीलता, और इन सब में अपनी स्वास्थ्य समस्याओं को सही से बताने की क्षमता शामिल है। लू, बाढ़, बारिश, और तूफान, उनके लिए गंभीर चुनौतियां ले कर आते हैं।
इसके साथ ही उनकी शिक्षा जैसी आवश्यक सेवा में भी कई प्रकार के अवरोध हो सकते हैं, जो उनके विकास और जीवन की गुणवत्ता पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकते हैं। इस संदर्भ में ऐसे बच्चों और उनके परिवार जनों को प्रासंगिक जानकारी देना और उनकी जागरूकता बढ़ाना इस बदलती जलवायु में उनके जीवन कि गुणवत्ता बढ़ाने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
इन बच्चों और इनके परिवारजनों को सुलभ जानकारी प्रदान करके हम जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों को समझने और निपटने में मदद कर सकते हैं। ऐसा करने से हम उन्हें अपनी और अपने समुदायों की सुरक्षा के लिए करने के लिए सशक्त बना सकते हैं।
ऐसे में इन बच्चों को नीतिनिर्माण के केंद्र में रखते हुए एक समावेशी जलवायु कार्यवाही बेहद ज़रूरी और प्रासंगिक हो जाती है। ऐसी नीतियाँ जलवायु सुरक्षा और दिव्यांग बच्चों की विशेष जरूरतों और उद्धार के बीच कि खाई को पाट सकती हैं।
जलवायु कार्यवाही की इन नीतियों में दिव्यांग बच्चों की जरूरतों को एकीकृत कर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि एक अधिक लचीला और टिकाऊ भविष्य बनाने के हमारे प्रयासों में यह विशेष बच्चे कहीं पीछे न रहें और जलवायु परिवर्तन की समस्याओं का सामना हम सब साथ मिलकर बराबरी से करें। दूसरे शब्दों में कहें तो इन नीतियों का उद्देश्य होना चाहिए कि इनकी दिव्याँग्ता इन्हें बदलती जलवायु में अपेक्षाकृत प्रतिकूल परिस्थितियों में न रहने दे।
मुझे इस बात को लेकर हर्ष है कि हमारी सरकार इस पूरे मुद्दे को लेकर विशेष रूप से संवेदनशील है और हमारे प्रधानमंत्री ने जब दुनिया को मिशन लाइफ की मशाल दी तो वो सही मायनों में दुनिया के लिए एक विश्व गुरु बन के उभरे। ऐसे में मुझे उम्मीद है कि हमारे नीति निर्माता समावेशी जलवायु कार्रवाई में दिव्याँग बच्चों के हितों को भी प्राथमिकता देने के प्रयास करेंगे। लेकिन उससे पहले ज़रूरी है कि हम और आप भी इन बच्चों के प्रति संवेदनशील होना शुरू करें, इनकी नज़र से भी कभी दुनिया देख इनके लिए उसे बेहतर बनाने की कोशिश करें।
(लेखिका दीपमाला पाण्डेय बरेली के एक सरकारी विद्यालय में प्रधानाचार्या हैं और दिव्यांग बच्चों को शिक्षा और समाज की मुख्यधारा में लाने के अपने प्रयासों के चलते माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम में भी शामिल हो चुकी हैं।)