धर्म-कर्म

यहां Mata की पूजा सुबह में Gujarat व रात में Ujjain में है होती

माता सती (Mata Sati) के जहां-जहां अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ (Shaktipeeth) के रूप में स्थापना हुई। धर्मग्रंथों में कुल 51 शक्तिपीठों की मान्यता है। इन्हीं शक्तिपीठों में एक हैं माता हरसिद्धि हैं। यहां माता सती की कोहनी गिरी थी। इनका मंदिर मध्यप्रदेश के उज्जैन (Ujjain) और गुजरात (Gujarat) के द्वारका दोनों जगह स्थित हैं।

माता सती (Mata Sati) के जहां-जहां अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ (Shaktipeeth) के रूप में स्थापना हुई। धर्मग्रंथों में कुल 51 शक्तिपीठों की मान्यता है। इन्हीं शक्तिपीठों में एक हैं माता हरसिद्धि हैं। यहां माता सती की कोहनी गिरी थी। इनका मंदिर मध्यप्रदेश के उज्जैन (Ujjain) और गुजरात (Gujarat) के द्वारका दोनों जगह स्थित हैं। माता की सुबह की पूजा गुजरात में और रात की पूजा उज्जैन में होती है। माता का मूल मंदिर गुजरात में मूल द्वारिका के मार्ग में स्थित है। यहीं से महाराज विक्रमादित्य इन्हें प्रसन्न करके अपने साथ उज्जैन ले गए थे। इस बात का प्रमाण है दोनों माता मंदिर में देवी का पृष्ठ भाग एक जैसा है।

सम्राट विक्रमादित्य की कुलदेवी थीं मां हरसिद्धि
मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं। मान्यता है कि उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य की यह कुलदेवी हैं और वे ही उनकी पूजा किया करते थे। गुजरात में त्रिवेदी परिवार के लोग आज भी इन्हें कुलदेवी मानकर इनकी पूजा करते हैं। जैन धर्म को मानने वाले भी इस देवी के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। इसकी एक रोचक कथा है।

माता की दृष्टि से समुद्र में डूब जाती थी नाव
गुजरात में माता का मूल मंदिर कोयला पर्वत के ऊंचे शिखर पर स्थित माना जाता है। लेकिन अब माता की पूजा जिस मंदिर में होती है वह पर्वत के कुछ नीचे है। इसके पीछे एक रोचक कथा है। कोयला पर्वत पर स्थित मंदिर से माता की दृष्टि समुद्र में जहां तक जाती थी वहां से गुजरने वाली नाव समुद्र में विलीन हो जाती थी। एक बार कच्छ के जगदु शाह नाम के व्यापारी की नाव भी डूब गई और वह खुद बहुत ही मुश्किल से बच सका। इसके बाद व्यापारी ने माता का मंदिर कोयला पर्वत के नीचे बनवाया और माता से प्रार्थना की नए मंदिर में निवास करने के लिए। इसके बाद से समुद्र में उस स्थान पर नाव डूबने की घटना बंद हो गई।
ऐसे नाम पड़ा हरसिद्धि

हरसिद्धि माता माता के बारे कथा यह भी है कि इनकी पूजा भगवान श्रीकृष्ण और यादव किया करते थे। इन्हें मंगलमूर्ति देवी के रूप में भी जाता है। लेकिन जब इनकी तपस्या से भगवान श्रीकृष्ण जरासंध का वध करवाने में सफल हुए तो यादवों ने प्रसन्न होकर इनका नाम हरसिद्धि रख दिया।

यूं हुई माता के चरणों में विक्रमादित्य की मृत्यु
राजा विक्रमादित्य माता के परम भक्त थे। वह हर बारह साल में एक बार अपना सिर काटकर माता के चरणों में अर्पित कर देते थे। लेकिन माता की कृपा से उनका सिर फिर से जुट जाता था। ऐसा राजा ने 11 बार किया। बारहवीं बार जब राजा ने अपना सिर चढ़ाया तो वह फिर नहीं जुटा। इस कारण उनका जीवन समाप्त हो गया। आज भी मंदिर में 11 सिंदूर लगे रुण्ड मौजूद हैं। मान्यता है कि यह राजा विक्रमादित्य के कटे हुए मुण्ड हैं।

उज्जैन में शाम और गुजरात में सुबह की होती है आरती
आज भी उज्जैन में माता की आरती शाम के समय होती है और सुबह के समय गुजरात में होती है। उज्जैन में हरसिद्धि माता का मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पीछे पश्चिम दिशा में स्थित है। दोनों मंदिरों के बीच में एक समानता है, वो है पौराणिक रूद्रसागर। दोनों मंदिरों के गर्भगृह में माता श्रीयंत्र पर विराजमान हैं।

तंत्र साधना के लिए काफी प्रसिद्ध है
तंत्र साधना के लिए उज्जैन में स्थित माता हरसिद्धि का मंदिर काफी प्रसिद्ध है। माता हरसिद्धि के आस-पास महालक्ष्मी और महासरस्वती भी विराजित हैं। माता के मंदिर में श्री कर्कोटेश्वर महादेव मंदिर भी स्थित है, जहां कालसर्प दोष के निवारण के लिए विशेष रूप से पूजा की जाती है।