धर्म-कर्म

कानपुर में है भगवान Vishnu के ‘Vaman Avatar’ का दुर्लभ मंदिर

भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के दशावतारों में से एक वामन अवतार (Vaman Avatar) का दुर्लभ मंदिर उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर की पुरानी घनी आबादी हटिया में स्थित है। यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना है। मान्यता है कि त्याग और समर्पण भाव से वामन देव की पूजा करने पर अहंकार समाप्त हो […]

भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के दशावतारों में से एक वामन अवतार (Vaman Avatar) का दुर्लभ मंदिर उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर की पुरानी घनी आबादी हटिया में स्थित है। यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना है। मान्यता है कि त्याग और समर्पण भाव से वामन देव की पूजा करने पर अहंकार समाप्त हो जाता है और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

मंदिर में वामन अवतार की प्रतिमा के अलावा श्याम वर्ण प्रतिमा के साथ बलदाऊ और रेवती की मूर्तियां भी हैं। हटिया मंदिर में वामन द्वादशी को विशेष पूजन का भी आयोजन किया जाता है। मंदिर के पूर्व पुजारी ब्रह्मलीन गुरुनारायण पांडेय के वंशज यहां का कार्यभार देखते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित मनोज पांडेय के मुताबिक, यहां मान्यता है कि अहंकार त्यागकर समर्पण भाव से पूजन करने पर वामन देवता प्रसन्न होते हैं। यह मंदिर उत्तर भारत का एकमात्र मंदिर है। द्वादशी के मौके पर भक्तगण दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। शुक्लपक्ष की द्वादशी को वामन देवता की जयंती मनाई जाती है। हर साल इस मंदिर में जयंती पर विशेष आयोजन होते हैं।

वामन मंदिर को कब और किसने बनवाया इसके प्रमाणिक तथ्य तो उपलब्ध नहीं हैं लेकिन बताया जाता है कि शहर के कारोबारी आनंदेश्वर प्रसाद गर्ग ने वर्ष 1940 में एक पुराना मकान खरीदा था। मकान में वामन देवता का मंदिर पाकर विधि विधान से पूजन किया जाने लगा।

वामन अवतार की कथा
वामन विष्णु के पांचवें अवतार थे। इसके साथ ही यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए (बौने ब्राह्मण के रूप में)। इनको दक्षिण भारत में उपेन्द्र के नाम से भी जाना जाता है। उस समय दैत्यों का राजा बलि हुआ करता था।

बलि बड़ा पराक्रमी राजा था। उसने तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। उसकी शक्ति के घबराकर सभी देवता भगवान वामन के पास पहुंचे तब भगवान विष्णु ने अदिति और कश्यप के यहां जन्म लिया।

एक समय वामन रूप में विराजमान भगवान विष्णु राजा बलि के यहां पहुंचे उस समय राजा बलि यज्ञ कर रहा थे। बलि से उन्होंने कहा राजा मुझे दान दीजिए। यह सुनकर बलि ने कहा-मांग लीजिए। वामन ने कहा मुझे आपसे तीन पग धरती चाहिए। दैत्यगुरु भगवान की महिमा जान गए।

उन्होंने बलि को दान का संकल्प लेने से मना कर दिया। लेकिन बलि ने कहा-गुरुजी ये क्या बात कर रहे हैं आप। यदि ये भगवान हैं तो भी मैं इन्हें खाली हाथ नहीं जाने दे सकता। बलि ने संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने अपने विराट स्वरूप से एक पग में बलि का राज्य नाप लिया, एक पैर से स्वर्ग का राज नाप लिया।

जब बलि के पास कुछ भी नहीं बचा तब भगवान ने कहा तीसरा पग कहां रखूं। बलि ने कहा-मेरे मस्तक पर रख दीजिए। जैसे ही भगवान ने उसके ऊपर पग धरा राजा बलि पाताल में चले गए। इसके बाद भगवान ने बलि को पाताल का राजा बना दिया।