विचार

यूरोप आयातित ऊर्जा पर निर्भरता का खामियाजा भुगत रहा है, आत्मनिर्भरता टाल सकती थी ऊर्जा संकट

यूरोप के तमाम विकसित देश अक्सर भारत जैसे विकासशील देशों पर अधिक कार्बन एमिशन (carbon emission) का आरोप लगाते हैं और उम्मीद करते हैं कि वो अपना एमिशन सतत गति से कम करें और एनेर्जी ट्रांज़िशन (energy transition) की सोचें, लेकिन आज हालात ऐसे बन गए हैं कि यूरोप ख़ुद एक ऊर्जा संकट (energy crisis) की मझधार में फंसा दिख रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी जिस आत्मनिर्भरता की मदद से देश के विकास की बात करते हैं, अगर उस आत्मनिर्भरता का पाठ यूरोप ने पढ़ा होता तो आज वो इस मुश्किल में न फंसा होता।

यूरोप के तमाम विकसित देश अक्सर भारत जैसे विकासशील देशों पर अधिक कार्बन एमिशन (carbon emission) का आरोप लगाते हैं और उम्मीद करते हैं कि वो अपना एमिशन सतत गति से कम करें और एनेर्जी ट्रांज़िशन (energy transition) की सोचें, लेकिन आज हालात ऐसे बन गए हैं कि यूरोप ख़ुद एक ऊर्जा संकट (energy crisis) की मझधार में फंसा दिख रहा है।

दरअसल रूस और यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) के चलते यूरोप में ऊर्जा संकट की स्थिति बन गयी है। वजह है यूरोप का आयातित गैस पर अत्यधिक रूप से निर्भर होना जिसके चलते अब यूरोप को डर है कि अगर रूस ने गैस सप्लाई रोक दी तो क्या होगा। मतलब ये समझिए कि कल तक जिस बात की नसीहत यूरोप विकासशील देशों को देता था, आज जब अपने पर आई तो उसी नसीहत को दरकिनार करता दिखता है।

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यूरोप की फिलहाल यह योजना है कि कोयले से बनने वाली बिजली के उत्पादन को स्टैंडबाई मोड में रखा जाए ताकि अगर रूस से मिलने वाली गैस की आपूर्ति अचानक बंद हो तो पैदा होने वाले हालात से निपटा जा सके। लेकिन अगर ऐसा हुआ तो इससे यूरोपीय संघ में शामिल देशों द्वारा प्रतिवर्ष उत्सर्जित प्रदूषणकारी तत्वों की कुल मात्रा में 1.3% का इजाफा होगा।

ऊर्जा क्षेत्र के थिंकटैंक एम्बर ने जर्मनी, ऑस्ट्रिया, फ्रांस तथा नीदरलैंड्स समेत पूरे यूरोप में घोषित की गई योजनाओं का विश्लेषण किया और यह पाया कि इस एलान के अमलीजामा पहनने के बाद वर्ष 2023 में ज्यादा से ज्यादा 60 टेरावाट बिजली की ही बढ़ोत्तरी होगी जोकि पूरे यूरोप को तकरीबन एक हफ्ते तक आपूर्ति करने के लिए पर्याप्त होगी।

एम्बर की वरिष्ठ विश्लेषक सारा ब्राउन ने कहा, “बार-बार चेतावनी के संकेत मिलने के बावजूद यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ने आयातित गैस पर अत्यधिक निर्भरता से जुड़े जोखिमों की अनदेखी की और गैस की जगह घरेलू अक्षय ऊर्जा स्रोतों को तेजी से अपनाने की जरूरत को भी नजरअंदाज किया।

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नतीजतन, अब यह देश एक मुश्किल और आपात निर्णय लेने को मजबूर हैं, जिसके तहत उन्हें अस्थाई रूप से कोयले पर निर्भर रहना होगा। वहीं, रिन्युब्ल ऊर्जा क्षमता की स्थापना में उल्लेखनीय तेजी लानी होगी।”

जर्मनी, ऑस्ट्रिया, फ्रांस और नीदरलैंड्स ने हाल ही में यह ऐलान किया है कि अगर रूस से होने वाली गैस की आपूर्ति अचानक बंद होती है तो बिजली मिल सके, इसके लिए कोयले से बनने वाली बिजली की मात्रा बढ़ाई जाएगी।

विश्लेषण में पाया गया है कि 14 गीगावॉट उत्पादन क्षमता वाले कोयला आधारित बिजली घर एहतियात के तौर पर क्रियाशील स्थिति में रखे गए हैं। यह यूरोपीय संघ की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता में 1.5 प्रतिशत की वृद्धि करेंगे। इनमें सबसे ज्यादा ऊर्जा क्षमता जर्मनी में है, जिसने पिछली 8 जुलाई को लागू किए गए अपने रिप्लेसमेंट पावर प्लांट प्रोविजन एक्ट के एक हिस्से के तहत 8 गीगावॉट की संचयी क्षमता को हरी झंडी दी है।

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सबसे बुरी स्थिति में भी जहां वर्ष 2023 में पूरे साल भर 65% लोड फैक्टर पर यह रिजर्व कोल प्लांट चलाए जाएंगे, तो कोयले से बनने वाली 60 टेरावाट बिजली का उत्पादन होगा जो पूरे यूरोप को एक हफ्ते तक बिजली देने के लिए काफी होगा।

पर्यावरण के नजरिए से देखें तो वर्ष 2023 में कार्बन डाइऑक्साइड का अतिरिक्त उत्सर्जन तकरीबन तीन करोड़ टन होगा, जो यूरोपीय संघ द्वारा वर्ष 2021 में उत्सर्जित कुल ग्रीन हाउस गैसों के 1.3% के बराबर है और यह ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले सालाना उत्सर्जन का 4% है।

दीर्घकालिक नजरिया बिल्कुल साफ है। यूरोप में कोयले का कोई भविष्य नहीं है। कोई भी यूरोपीय देश वर्ष 2030 तक कोयले को चरणबद्ध ढंग से चलन से बाहर करने के अपने संकल्प से मुकरा नहीं है। लेकिन, आगर यूरोप ने आयातित ऊर्जा पर ऐसी निर्भरता न राखी होती तो आज यह दिन न देखना पड़ता।